रोज सुबह झूलते हुए स्कूल बस में आंखे मलना
दोस्तों के साथ मिलकर क्लास में हुल्लड़ करना
शाम को गली क्रिकेट का सिलसिला हुआ अफ़साना
बच्पन के दोस्त हुए पुराने….
….और, E.M.I का चक्कर हुआ चालू
A.C. आफ़िस में फ़ाईलों से लड़ना
फ़िर बास कि डांट सुनकर
बिवी के तानॊ में खोना
दस साल गुजर गए
सर के बाल भी पक गए
सोचा तो था कि दुनिया जीतेंगे
पर लोकल ट्रैन कि कतार में हि फ़स के रह गए
अब वो आलम है कि
महिने की तीस का करते हैं पल्के बिछाए इंतज़ार
ना बियर की बौटल खुल्ती है
ना शाम के चाय- पकोड़े में ठहाके लगते हैं
लड़क्पन के इरादे सपने बन के रह गए
और हम पंजे के नीचे दब के रह गए
सुड़-सुड़ाते हुए चाय पीने में जो मज़ा है अब
बड़ी गाड़ियों कि तेज़ी में भी वो कशिश आए ना अब
गार्ड्न में बैठे बैठे करते हैं उस घड़ी का इंतेज़ार
जब तुम आओगी और अपने साथ ले जाओगी
कौलेज के दोस्त हुए पुराने
वो बीते सपने अब पूरे करेगा कौन हमारे….
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