अपने अदम्य साहस और संघर्ष से दी इन वीरांगनाओं ने देशभक्ति की मिसाल।
देश को आजाद हुए 70 वर्ष बीत गए हैं और हम कभी भी उन वीर सपूतों के साहस, संघर्ष और बलिदान को भुला नहीं सकते जिन्होंने अपना जीवन आजादी की लड़ाई में झौंक दिया। आज जिस आजाद भारत में हम सांस ले रहे हैं, अपने अधिकारों के लिए किसी के भी सामने सीना तान कर खड़े हो जाते हैं, यह उन वीर सपूतों की देन है। प्रत्येक वर्ष स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) पर लोग भारी संख्या में खड़े होकर इस आजाद जीवन के लिए उन स्वतंत्रता सेनानियों का शुक्रिया अदा करते हैं। आज हम आजाद भारत में रहते हुए भी हिंदू, मुस्लिम, सिख्ख, इसाई की लड़ाई लड़ रहे हैं, आजादी के समय उन सेनानायकों ने गरीब, अमीर, जाति, धर्म, महिला, पुरुष, छोटे, बड़े का भेद भुलाकर आजादी की जंग लड़ी थी, वह एकता की ही शक्ति थी कि अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा था।
आजादी की लड़ाई में महिलाओं ने भी पुरुषों से कम योगदान नहीं दिया, समय समय पर महिलाएं अपने साहस और बहादुरी का प्रयोग करते हुए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली हैं। हम इस 70 वें स्वतंत्रता दिवस पर उन वीरांगनाओं से आपका परिचय कराते हैं जिन्होंने भारत को आजाद करने में मुख्य भूमिका निभाई।
1- दुर्गाबाई देशमुख-: दुर्गाबाई देशमुख महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित थी, उनका जन्म 15 जुलाई 1909 में हुआ था, दुर्गाबाई देशमुख ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और भारत को आजाद कराने के लिए एक वकील, एक राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय भूमिका निभाई। आंदोलनों में मुख्य भूमिका निभाने के कारण ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें जेल भेज दिया था वह जेल में 3 साल रहींं, दुर्गाबाई भारत के संविधान सभा की एकमात्र महिला अध्यक्ष रही, दुर्गाबाई ने केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की नीवं महिलाओं, बच्चों और जरूरतमंदों को पुनर्वास दिलाने के लिए रखी।
2- ऊषा मेहता -: ऊषा मेहता 3 जनवरी 1931 को एक दलित परिवार में जन्मी, ऊषा मेहता एक समाजसेवी तथा क्रांतिकारी थी, उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए 18 स्कूल खोले, सीक्रेट कांग्रेस रेडियो को शुरू करने वाली उषा मेहता ही थी, उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के दौरान अपने रेडियो स्टेशन के द्वारा सक्रिय भूमिका निभाई जिसके कारण उन्हें पुणे की यदवरा जेल में भी रहना पड़ा। उनका पूरा जीवन समाज में हीन भावना के शिकार व्यक्तियों के अधिकारों को दिलाने में बीता।
3- अरुणा आसफ अली-: अरुणा आसफ अली भी एक स्वतंत्रता सेनानी थी जिन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के गोवालिया मैदान में कांग्रेस का झंडा फहराने के लिए हमेशा याद किया जाता है। आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा परंतु अरुणा आसफ अली की देशभक्ति की भावना को जेल की दीवारें भी खत्म नहीं कर पाईंं, उन्होंने 1968 में सफलतापूर्वक मीडिया पब्लिशिंग हाउस की स्थापना की तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मासिक पत्रिका “इंकलाब” का संपादन किया। आजादी की लड़ाई में अपने अदम्य साहस के लिए उन्हें 1998 में भारत रत्न पुरस्कार से नवाजा गया।
4- विजयलक्ष्मी पंडित-: विजयलक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की बहन थी, स्वतंत्रता की लड़ाई में विजयलक्ष्मी पंडित ने भरपूर योगदान दिया, आजादी के लिए लड़े गए प्रत्येक आंदोलनों में वह आगे रही और जेल गयी, जेल से रिहा होने के बाद फिर आंदोलन में कूद पड़ती। विजयलक्ष्मी पंडित कैबिनेट मंत्री बनने वाली प्रथम महिला थी। वह 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली विश्व की प्रथम महिला थी और स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजपूत भी, जिन्होंने मास्को, लंदन और वाशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
5- सरोजिनी नायडू-: सरोजिनी नायडू का जन्म हैदराबाद में हुआ था, गोपाल कृष्ण गोखले के कलकत्ता अधिवेशन में दिए गए भाषण से प्रेरित होकर वह राजनीति में उतर आई। स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ वह अच्छी कवित्री भी थी। खिलाफत आंदोलन में सरोजिनी नायडू ने मुख्य भूमिका निभाई तथा युवाओं में राष्ट्रीय भावना जागृत करने के लिए एनी बेसेंट, अय्यर के साथ 1915 से 1918 तक भारत भ्रमण किया। 1922 में उन्होंने खादी पहनने का प्रण लिया तथा 1922 से 1926 तक दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के समर्थन में आंदोलनरत रहींं सरोजिनी नायडू उत्तर प्रदेश की गवर्नर बनने वाली पहली महिला थी जिन्हें पूरा देश भारत कोकिला के नाम से जानता है।
6- सावित्रीबाई फुले-:सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था|सावित्रीबाईभारत की प्रथम महिला शिक्षिका एवं समाज सुधारिका थीं| उन्होंने अपने पति के साथ स्त्रियों के अधिकारों के लिए कार्य किए|