कितने खुबसूरत लब्ज़ है तुम्हारे,कभी जी कभी यार कहती हो |
अज़य महिया
सुना है ये प्यार-व्यार का चक्कर यहीं से शुरू होता है ||
तुम याद तो बहोत आओगे हमें,पर याद कर नहीं सकूंगा
अज़य महिया
अभी मै नौकरी के चक्कर में किताबों से, इश्क कर बैठा हूँ|
कितनी पागल हो तुम,बात को समझती ही नहीं हो |
अज़य महिया
मेरे गीतों के अल्फाजों को दिल पर लेती ही नही हो ||
दिल तुम्हारा हो या हमारा ,धङकता तो इक-दूजे के लिए ही है💞
अज़य महिया
एक मै था ,एक वो थी और थी हमारी मोहब्बत
अज़य महिया
अब ना वो है,ना हूँ मै,ना रही हमारी मोहब्बत !!
तुम आओ या नौकरी, तुम दोनों ही बङे कमाल की चीज़ हो
अज़य महिया
वो आएगी भी कैसे
अज़य महिया
हम इंतज़ार जो करते है
आशाओं की किरणों को अम्बर तक पहूंचाते हैं पापा
अज़य महिया
इक नदी को किनारे देकर समन्दर से मिलाते हैं पापा
सुबह से शाम तक भूखे रहकर हमे पालते हैं पापा
अपनों से प्यार करना सीखिए साहब, नफरत करना तो दुनिया सीखा देगी
अज़य महिया
कितनी पागल हो तुम,बात को समझती ही नहीं हो |
मेरे गीतों के अल्फाजों को दिल पर लेती ही नही हो ||दिल तुम्हारा हो या हमारा, धङकता तो इक-दूजे के लिए ही है
कैसे तारीफ करूं तेरी इन आँखो की
मोहब्बत-ए-नशा तो दिल ने किया है|रात जरा-सी तू रूक जा,चंदा तू जरा-सा ठहर जा
अज़य महिया
अभी मोहब्बत मे मिलन का अहसास बाकी है !!
“ऐ चाँद तेरी चाँदनी की क्या तारीफ करूं
मैने उस नाजूक कली को अभी देखा है!!”उसकी जुल्फ़ें कितनी हंसी थी
अज़य महिया
कभी देखा था बाल बनाते वक्त
मोहब्बत की राहों में यदि कांटे न आएं ‘अज़य’ |
अज़य महिया
तो मोहब्बत करने मे मज़ा ही क्या है || “
ज़िन्दग़ी की कठिन डग़र पर सितारों की महफिलें सज़ा दूंगा |
अज़य महिया
तुम इधर-ऊधर की क्यों पूछते हो अपनी पूछो सब बता दूंगा ||
“कितने पहरे लगते है मोहब्बते-शकूं पर’अज़य’ |
अज़य महिया
तुम चाहो तो कभी मोहब्बत करके देख लो ||”
उसकी मुस्कान इतनी कोमल है ‘अज़य’ |
अज़य महिया
कि श्मशान में मूर्दा ऊठकर बोलने लग जाए ||
“उसकी खुबसूरती के चर्चे पूरे गाँव में हैं ‘अज़य’ |
अज़य महिया
कल देखा था उसके घर के आईने को बोलते हुए ||”
“मर जाऊंगा,लुट जाऊंगा या मार दिया जाऊंगा या मार आऊंगा |
अज़य महिया
कुछ भी हो पर मरते दम तक तुमको और सिर्फ तुमको ही चाहूंगा ||”
“कितनी हंसी और जवान है जवानी
अज़य महिया
जो चले न बिन, ख्वाबों की रानी “
“किसको सुनाऊं अपनी दर्द-ए-दास्तां,कौन सुनेगा ये कहानी |
अज़य महिया
कितने अल्फ़ाज़ छुपाए बैठा हूँ दिल में
जब से आई है जवानी ||”
“इस पानी सोखने वाली गर्मी तुम आ जाओ ‘ग़ालिब’
अज़य महिया
तो कलेजे को ठंडक मिल जाए”
“आजकल मैं हवाओं से बातें करने लगा हूँ ‘अज़य’
अज़य महिया
कहीं ये हवा उनके घर से होकर तो नहीं आ रही है ||”
“रूख तो हमारा भी शायर बनने का है
अज़य महिया
‘अज़य’
पर हमने अभी तक मोहब्बत नहीं की “
“बदले हुए आदमी को कैसे पहचानें साहब
अज़य महिया
यहां वक्त को खुद अपनी पहचान बतानी पङती है ||”
“मैं न मरता तो कोई और मरता, कोई और न मरता तो खुदा मरता |
अज़य महिया
इस चाँद से हसीं चेहरे को देखकर कोई न कोई तो अवश्य मरता ||
“कितना तन्हा और अकेला हो गया हूँ मैं |
अज़य महिया
उसकी तस्वीर को देख-देख कर ‘अज़य’ ||”
“आज उसने कपङे-वपङे,जेवर-वेवर क्या बदले उसको देखने चाँद भी उसके
अज़य महिया
घर की छत पर आकर थम गया |”
“कपङे-वपङे,जेवर-वेवर सब खरीद लूंगा मैं |
अज़य महिया
तू मिल जाए तो लोगों का ज़मीर खरीद लूंगा मैं ||”
“उसकी एक कॉल से चेहरा खिल उठता है ‘अज़य’
अज़य महिया
वो समझते हैं कि हमारा दुःख दूर हो गया है ||”
“कितनी नादां और भोली है वो अल्फ़ाज़ को समझती ही नहीं है |
अज़य महिया
उससे क्या पता ‘अज़य’ कोई उसके इश्क़ मे रोता होता जा रहा है ||”
“खोजता रहता हूं किताबों को अलमारी से
अज़य महिया
शायद तुम्हारी कहीं वो तस्वीर मिल जाए“
“उसकी यादों में सूखकर कांटा हो चुके हैं
अज़य महिया
वह समझते हैं कि कोई बीमारी हो गई है”
“उसका हंसना,रूठना,मनाना सब याद है |
अज़य महिया
कैसे भूल जाए कोई इतने हसीं चेहरे को ||”
“उसका सामने आकर यूं धीरे-से मुस्कुराना दिल को तसल्ली देता है |
अज़य महिया
कैसे बताऊं उस दिले-बहार को,ये दिल कितनी तकलीफ देता है ||”
“शाम हुई है आंखों में ,दिल में रोशनी-सी जागी है |
अज़य महिया
कहीं से तो वो निकले होंगे वरना ये आग क्यों लागी है ||”
“रास्तों पर दुश्मनों का होना भी जरूर था ‘अज़य’ |
अज़य महिया
वरना पता कैसे चलता कि हम मोहब्बत करने जा रहे है ||”
“कहीं से तो निकल कर हमारे सामने आए वो ‘अज़य’ |
अज़य महिया
हम उनका दीदार करने के लिए मुद्दतों से तरसे है ||”
“कई वर्षों बाद हमारी याद आई उनको
अज़य महिया
अब उम्र थोङी है हमारी इश्क करने की
“शाम हुई है आंखों में ,दिल में रोशनी-सी जागी है |
अज़य महिया
कहीं से तो वो निकले होंगे वरना ये आग क्यों लागी है ||”
“तुम आओ तो दिल को शुकूं और चैन मिले
अज़य महिया
वरना ये बारिश तो आती जाती रहेगी’अजय’ ||
“तूम यूं बारिश बनकर आओ ‘सनम’
अज़य महिया
कि कभी फिर पतझङ ना आए ||”
“उसका आना कोई बारिश से कम थोङी है ‘अज़य’ |
अज़य महिया
बारिश धरती को और वो दिल ठंडा कर देती है || “
“बूंदा-बांदी रे टेम तू रूसा-रासी ना करया कर |
अज़य महिया
कठ ही मै गरजण लागगो तो ओळा पङ ज्या गा ||”
“हमने उसकी याद में हज़ारों ख़त लिखे
अज़य महिया
‘अज़य’
एक मुद्दत तक ख़त ही गायब हो गए |”
“उसकी लिखावट को आज भी संभाले हुए हैं हम
अज़य महिया
वरना किताबों का हमारे यहाँ क्या काम था ||“
“तुम्हे क्या पता, के हम इतना क्यों पढते हैं
अज़य महिया
किताब के आखिरी पन्ने पर तुम्हारा ही नाम लिखा है |”
“किताबें तो हम इसलिए खोले रहते हैं ‘अज़य’
अज़य महिया
कि लोगों को लगे के हम पढ़ रहे हैं
हक़ीकत ये है कि
किताबों मे उसके वर्षों से लिखे ख़त छुपाए हुए हैं ||
“एक शायर मीर था,था एक गालिब |
अज़य महिया
एक शायर राहत है, है एक विश्वास,
एक मैं हूँ ‘अज़य’, है एक मेरा मनमीत ||”
“खामोशी बता रही है कि तुम्हे भी इश्क हो गया है
अज़य महिया
वरना इतने उदास और बेचैन नहीं रहते |
“दूर एक दिशा मे घनघोर घटा-सी छाई है
अज़य महिया
लगता है फिर चांद से चाँदनी बिछुङने वाली हैं”