मनोरोगी,
अभिनव कुमार
मैं हूं ढोंगी,
और हूं वाहियात,
मैं केवल भोगी ।
सारी कमियां मेरे नाम,
अभिनव कुमार
मुझपर ही सारे इल्ज़ाम,
थोड़ा ख़ुद को देख तू प्यारे,
नंगों से भरा पड़ा इमाम।
मैं बिल्कुल ही अकेला हूं,
अभिनव कुमार
छिलका बिन कोई केला हूं,
बाहर वालों की बात तो छोड़ो,
घर वालों के लिए झमेला हूं ।
इस बार नहीं झुकूंगा मैं,
अभिनव कुमार
पूरा बदला लूंगा मैं,
इंठ का जवाब पत्थर से,
इस बार बिल्कुल दूंगा मैं ।
ज़िंदगी ख़त्म हो जाएगी,
अभिनव कुमार
लड़ाई नहीं होगी,
छोड़दो वैर नाराज़गी,
बड़ी कृपा होगी ।
मर गया हूं,
अभिनव कुमार
या मार दिया गया हूं,
जीते जी दिल से,
उतार दिया गया हूं ।
जब ज़िक्र ख़त्म हो जाए,
अभिनव कुमार
और फ़िक्र गुम हो जाए,
फिर समझ लो प्यारे,
तुम जीते जी भस्म हो गए ।
अकेला हो गया,
अभिनव कुमार
या कर दिया गया,
मुझसे मिलने का,
नाटक किया गया ।
सोचता हूं ‘खत्म कर दूं खु़द को,
अभिनव कुमार
आज़ाद कर दूं तुझ को’
ये कर नहीं पाता हूं,
घुट घुटकर मर जाता हूं ।
जो पास है, उसकी तुझे प्यास नहीं,
अभिनव कुमार
जो दूर है, उसका ही तू दास सही,
घर की मुर्गी दाल बराबर,
ऐसे नहीं ये बात कही गई ।
जाने कितनी ही बाक़ी सांसें हैं !
अभिनव कुमार
बहुत बची मगर रंजिशें बातें हैं,
जल्दी ही निपटारा कर,
जाने कौन घड़ी बने यादें हैं !
ये जो जिस्म-फरोशी की भूख है,
अभिनव कुमार
बरखुरदार लगती बेहद ही ख़ूब है,
गौर करो कभी तसल्ली से तुम,
बड़ी तगड़ी धूप है ।
शराफ़त महज़ अब एक गाली है,
अभिनव कुमार
कलयुग की गई मती मारी है,
शुरू में तो बजती ताली है,
अंत में बस कंगाली है ।
अच्छा संदेश,
अभिनव कुमार
मत यूं तू भेज,
ख़ुद अमल हो पहले,
फ़िर हों उपदेश l
संदेश पढ़ना,
अभिनव कुमार
अच्छा पर आधा,
अमल करें तो,
सोने पे सुहागा l
अंतर्द्वंद चल रहा है,
अभिनव कुमार
अंधाधुंध चल रहा है,
मैंने सोचा तन्हा है,
ये तो झुंड चल रहा है l
अल्प मगर अच्छा आपका साथ,
अभिनव कुमार
चुप हैं पर ज़ाहिर सारे ज़ज्बात,
आप नहीं बिल्कुल औरों के जैसे,
आपमें है कुछ अलग ही बात l
मैं ग़लत, मैं ग़लत,
अभिनव कुमार
हाँ मैं ग़लत, मैं ग़लत,
बोलो कहाँ !
करूँ दस्तख़त l