अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 8

मनोरोगी,
मैं हूं ढोंगी,
और हूं वाहियात,
मैं केवल भोगी ।

अभिनव कुमार

सारी कमियां मेरे नाम,
मुझपर ही सारे इल्ज़ाम,
थोड़ा ख़ुद को देख तू प्यारे,
नंगों से भरा पड़ा इमाम।

अभिनव कुमार

मैं बिल्कुल ही अकेला हूं,
छिलका बिन कोई केला हूं,
बाहर वालों की बात तो छोड़ो,
घर वालों के लिए झमेला हूं ।

अभिनव कुमार

इस बार नहीं झुकूंगा मैं,
पूरा बदला लूंगा मैं,
इंठ का जवाब पत्थर से,
इस बार बिल्कुल दूंगा मैं ।

अभिनव कुमार

ज़िंदगी ख़त्म हो जाएगी,
लड़ाई नहीं होगी,
छोड़दो वैर नाराज़गी,
बड़ी कृपा होगी ।

अभिनव कुमार

मर गया हूं,
या मार दिया गया हूं,
जीते जी दिल से,
उतार दिया गया हूं ।

अभिनव कुमार

जब ज़िक्र ख़त्म हो जाए,
और फ़िक्र गुम हो जाए,
फिर समझ लो प्यारे,
तुम जीते जी भस्म हो गए ।

अभिनव कुमार

अकेला हो गया,
या कर दिया गया,
मुझसे मिलने का,
नाटक किया गया ।

अभिनव कुमार

सोचता हूं ‘खत्म कर दूं खु़द को,
आज़ाद कर दूं तुझ को’
ये कर नहीं पाता हूं,
घुट घुटकर मर जाता हूं ।

अभिनव कुमार

जो पास है, उसकी तुझे प्यास नहीं,
जो दूर है, उसका ही तू दास सही,
घर की मुर्गी दाल बराबर,
ऐसे नहीं ये बात कही गई ।

अभिनव कुमार

जाने कितनी ही बाक़ी सांसें हैं !
बहुत बची मगर रंजिशें बातें हैं,
जल्दी ही निपटारा कर,
जाने कौन घड़ी बने यादें हैं !

अभिनव कुमार

ये जो जिस्म-फरोशी की भूख है,
बरखुरदार लगती बेहद ही ख़ूब है,
गौर करो कभी तसल्ली से तुम,
बड़ी तगड़ी धूप है ।

अभिनव कुमार

शराफ़त महज़ अब एक गाली है,
कलयुग की गई मती मारी है,
शुरू में तो बजती ताली है,
अंत में बस कंगाली है ।

अभिनव कुमार

अच्छा संदेश,
मत यूं तू भेज,
ख़ुद अमल हो पहले,
फ़िर हों उपदेश l

अभिनव कुमार

संदेश पढ़ना,
अच्छा पर आधा,
अमल करें तो,
सोने पे सुहागा l

अभिनव कुमार

अंतर्द्वंद चल रहा है,
अंधाधुंध चल रहा है,
मैंने सोचा तन्हा है,
ये तो झुंड चल रहा है l

अभिनव कुमार

अल्प मगर अच्छा आपका साथ,
चुप हैं पर ज़ाहिर सारे ज़ज्बात,
आप नहीं बिल्कुल औरों के जैसे,
आपमें है कुछ अलग ही बात l

अभिनव कुमार

मैं ग़लत, मैं ग़लत,
हाँ मैं ग़लत, मैं ग़लत,
बोलो कहाँ !
करूँ दस्तख़त l

अभिनव कुमार
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