सीधी बातों को भी उल्टा आंका,
अभिनव कुमार
गोले बारूदों से मुझको दागा,
अपने अंदर बिल्कुल ना झाँका,
कुछ था नज़रिया, कुछ और ही भांपा !
जैसे ही साझा की अपनी किताब,
अभिनव कुमार
बदले में आलोचना का मिला ख़िताब,
हक़ीक़त में बदलने चला था ख़्वाब,
मुझपे ही तोहमत लगी बेहिसाब ।
वैसे तो कम ही मैं करता हूँ बात,
अभिनव कुमार
मन हुआ, बयां कर दिए जज़्बात,
क्या हुआ, सोच होगे हैरान !
आघात, आघात, केवल आघात ।
मैं सबकी नज़रों में गिर गया हूँ,
अभिनव कुमार – Jan 21
कोसा गया हूँ – जिधर गया हूँ,
जुड़ा ही कब था कि बिखर गया हूँ,
कुछ भी हो, मैं डर गया हूँ ।
मन की बात,
करूँ किसके साथ,
हैं भरे पड़े,
कितने ज़ज्बात !हो रही घुटन,
अभिनव कुमार – Jan 21
भटके तन मन,
अन्दर ही अन्दर,
हो रहा दफन
यही दुआ इस साल,
अभिनव कुमार – Jan 21
रहो खुश हर हाल,,
चल रही हैं साँसें,,,
ये ही सौगात I
गहराई …
समझो तो जन्नत पाई …न मन्दिर गया, न मस्जिद गया,
मैं “भीतर” गया,
मैं “भी तर” गया ।न मरकर जिया,
मैं “जीकर” जिया,
कि मेरा भी था “जी कर” गया ।“अभि” की कलम से ✍🏻
अभिनव कुमार – Dec 20
मुझको भला बुरा कहने वालों,
ज़रा आईना भी तो देखलो,,
मुझसे नाराज़ रहने वालों,,,
ज़रा ख़ुद से भी कुछ सीख लो ।
माना जल बिन आकार,मन माफ़िक लो इसको ढाल,,
जो दुरुपयोग तो हो विकराल,,,
फ़िर तांडव और बस हाहाकार ।
अभिनव कुमार – Nov 20
रिश्ते कितने ही ज़्यादा गुंजल हो गए,
अभिनव कुमार – Nov 20
ये देख हम जीते जी पागल हो गए,,
कोशिश की सुलझाने की तो,,,
ना जाने कहाँ कहाँ पर दंगल हो गए !
मैं गलत, मैं गलत,
अभिनव कुमार – Nov 20
हाँ भाई, मैं ही गलत,,
मैं गलत हूँ सौ प्रतिशत,,,
लो गलतफहमियां भी हैं सहमत ।
मज़ाक लिया गया मुझे दशकों से,
अभिनव कुमार – Nov 20
कहा गया “करो नज़रअंदाज़”,,
जल को तोला गया मेरे अश्क़ों से,,,
उसी से चलवाए पानी के जहाज़ ।