ज़रूरी है अपने ज़हन में राम को जिंदा रखना,
पुतले जलाने से कभी रावण नहीं मरा करते
अभिनव कुमार – Oct 2020
तुमने कहा हमें भला बुरा,
क्या क्या तुमने कहा नहीं,,
तुम्हें गुमां – ‘मैं हूँ अधूरा”,,,
मुझे यकीं – “हूँ डूबने वाला नहीं
अभिनव कुमार – Oct 2020
तेरे रहम-ओ-करम पर पल रहें हैं हम,
सिर्फ़ कहने को ही बड़े हैं हम,,
आज जब हम हुए आत्म-निर्भर,,,
तुम कहते हो – “कैसे खड़े हैं हम !”
तेरी अहसानों की आग में जल रहे हैं हम,
बेड़ियों में जैसे लिपटे पड़े हैं हम,
और तुम कहते हो हरदम,,,
कि छाती पे मूंग दल रहे हैं हम !
अभिनव कुमार – Oct 2020
चला था सीधी राह पे,
उलझ के रह गया हूँ,
खोया था पाने की चाह में,
सैलाब में बह गया हूँ
अभिनव कुमार – Oct 2020
नफ़रतों के शहर में चालाकियों के डेरे हैं,
यहां वे लोग रहते हैं – जो तेरे मुँह पर तेरे और मेरे मुँह पर मेरे हैं ।
अभिनव कुमार – Sep 2020
रातों के शहर में आने वाले सवेरे हैं,
इसी उम्मीद में हम आंखें बिछाए बैठे हैं ।
अभिनव कुमार – Sep 2020
उजालों में मिल ही जाएगा…
कोई ना कोई …!!
तलाश उसकी करो…
जो अंधेरों में भी साथ दे…!!
यार तो बन ही जाएगा…
कोई ना कोई…!!
फ़रियाद उसकी करो….
हर हाल जो तुमको थाम ले…..!!
अभिनव कुमार – Sep 2020
भाग – 1 पढ़िए