क्या बुरा किया था ?
अभिनव कुमार
ये तो बता दो ।
बताकर कसूर,
फिर बेशक सज़ा दो ।
चुपचाप सह गए,
अभिनव कुमार
तो रिश्ते रह गए,
कुछ अगर कह गए,
तो रिश्ते डह गए ।
पता नहीं क्या दिक्कत है ?
अभिनव कुमार
घृणा मुझसे १०० प्रतिशत है ।
तभी तो कहते हो,
बेइज़्ज़ती उसी की होती है,
जिसकी होती इज़्ज़त है ।
शूद्र हूं, मैं हूं हरिजन,
अभिनव कुमार
तभी ना लगे तुम्हारा मुझसे मन,
सारा दोष मेरे ऊपर लादा,
बिना बात के सदा है अनबन ।
किस बात की सज़ा दी ?
अभिनव कुमार
तेरी हर बात में तो मेरी रज़ा दी !
बिल्कुल अकेला रहना है,
अभिनव कुमार
किसी से कुछ नहीं कहना है,
बस सुनते ही रहना है,
और बस सहना है ।
कुछ बुरा लगे तो कहना मत,
अभिनव कुमार
अंदर ही रखना शत प्रतिशत,
बाहर जो निकाला तो ख़ैर नहीं,
पहले ही तुमसे है बेहद नफ़रत ।
अकेला था पहले, थी घुप तन्हाई,
अभिनव कुमार
की शादी ये सोच, मिलेगा शैदाई,
बन गए मगर जैसे कुत्ते बिल्ली,
मैं चोर और वो सिपाही ।
सही है वो तो खुलकर साथ दो उसका,
अभिनव कुमार
गलत है अगर तो बताओ उसे कुछ नुसखा,
बनो मत धृतराष्ट्र या गांधारी,
कि वाजिब है गलत पे करना गुस्सा ।
हम बिस्तर पे थे कुछ महीने,
अभिनव कुमार
कि कोई ना आया हमसे मिलने,
बस मोबाइल पे ही पूछे हाल,
“इसकी भी क्या ज़रूरत थी” कहा दिल ने !
तुम्हें मेरी ज़रूरत नहीं,
अभिनव कुमार
ये तेरी रोज़ की कथनी है,
क्या मैंने ज़ुल्म किए तुझपे ?
ये गाथा मुझको सुननी है ।
सही हूं, फिर भी गलत कहती हो,
अभिनव कुमार
हरदम इज्ज़त उतारती रहती हो,
सुनता रहता हूं डरकर चुप करके,
फ़िर भी कहती हो कि सहती हो !
नहीं रखा खुद कभी मेरे हाथों में हाथ,
अभिनव कुमार
नहीं समझ पाई मेरे जज़्बात,
रोया मैं पूरी रात भर,
तुम्हारे लिए ये छोटी सी बात ।
मेरी खातिर थोड़ा लगालो सिंदूर,
अभिनव कुमार
कहा मैंने तुमसे ये कई कई बार,
तुमने मगर मुझे किया आया गया,
दोहराया तो लगाई खुलकर फटकार ।
नकारा गया हूं,
अभिनव कुमार
फटकारा गया हूं,
जीते जी मैं तो,
मारा गया हूं ।
बहुत कीमती हैं मेरे आंसू,
अभिनव कुमार
मैंने व्यर्थ ही उसपर ज़ाया किए,
जिसके लिए मैंने पूरी ज़िंदगी गुज़ार दी,
उसने मुझे हमेशा आया गया किया ।
वो औरों के लिए मोम,
अभिनव कुमार
मेरे लिए पत्थर निकली,
औरों के दिल में जा समाई,
मेरे दिल से अक्सर निकली ।
कभी नहीं की उसने मेरी कद्र,
अभिनव कुमार
शब्द एक से बड़कर बोले अभद्र,
ये कर उसे होए ना ग्लानि,
होता उसको केवल फक्र ।
उसकी सारी बदतमीजियां कबूल,
अभिनव कुमार
मेरी सारी अच्छाइयां धूल,
बता तो दीजिए मुझे असल में,
क्या हो गई है मुझसे भूल ?
थी मेरी बातें शायद बचकाना,
अभिनव कुमार
तभी तुमने दाना नहीं डाला,
आशाओं को मैंने पर,
बेहद चाव से पाला ।
फासले क्या हैं, कुछ भी नहीं,
अभिनव कुमार
सोचो तो हैं, सचमुच पर नहीं !
ये बनाते हम, ये बनते ख़ुद नहीं,
हों केवल नज़दीकियां, क्या ये अद्भुत नहीं !