अभिनव कुमार – छद्म रचनाएँ – 10

बढ़े से भी खाता हूं,
छोटे से भी खाता हूं,
गालियां खाने की आदत है,
अपना धर्म निभाता हूं ।

अभिनव कुमार

बाहर से कुछ,
अंदर से कुछ,
ऐसा क्या मैं,
हूं सचमुच ?

अभिनव कुमार

जो मिला,
उसे नहीं गिना,
जो नहीं मिला,
बस उसका गिला ।

अभिनव कुमार

चंद्रयान तीन,
नहीं होए यकीन,
अद्भभुत उपलब्धि,
बगलें झांके चीन !

अभिनव कुमार

हज़ारों बार गर कक्षा में,
होते ना अध्यापक हाज़िर,
फिर बोले कैसे हो पाता ?
चंद्रयान कक्षा में स्थापित ! ✍🏻

लहू प्रवाहित जैसे हर नस – नस,
गुरु आसीन वैसे हर कण – कण । ✍🏻
शिक्षक दिवस पर ढेरों बधाइयां 🌹

अभिनव कुमार

दर्द अनुभूत हो दूजे का, समझो फिर तुम कि ज़िंदा हो,
हमदर्द अगर हो गर तो, खुदा का नेक तुम बंदा हो,
दे बेवजह दर्द जो किसी को, ऐसा करे दरिंदा हो,
ऐसा काम ना करें कि जिससे, अंतःकरण शर्मिंदा हों ।

अभिनव कुमार

ना परवाह है, ना ज़िक्र है,
ना पनाह है, ना फक्र है,
हम जिएं या कि फ़िर मरें,
ना चाह है, ना फिक्र है ।

अभिनव कुमार

जीते जी मुझे मार दिया,
दिल से मुझे उतार दिया,
जो गलती मैंने की नहीं,
उसका दोष भी मुझपर डाल दिया ।

अभिनव कुमार

औरों से करते हो घंटों बातचीत,
हमें नहीं होते चंद पल भी नसीब,
जतला देता हूं गर मैं ये रूठकर,
कहते हो ‘मत करो ईर्ष्या, ले जाओ तशरीफ़’ ।

अभिनव कुमार

किस्से करूं मैं अपनी शिकायत ?
कोई नहीं, कोई भी तो नहीं ।
तुमने क्या कहा – सब मान बैठे मुझे नाजायज़ ।
मेरी सुनवाई कहीं नहीं ।
✍🏻

अभिनव कुमार

तुम रोओ तो मोती बरसें,
मैं रोऊं तो कीचड़ ।
एतबार मेरा किए हो गए अरसे,
आ गया मुझपर पतझड़ ।

अभिनव कुमार

बहुत सोचता हूं कि बनूं तुम्हारी तरह पत्थर,
पल भर में मगर हो जाता हूं मोम ।
रखते हूं तुम्हारे पैर पे अपना सर,
बोलते हो मुझसे तो खिल उठता है रोम रोम ।

अभिनव कुमार

जाने किसने सिखाया है तुम्हें मुझसे नफरत करना !
चलो जिसने भी सिखाया है, बड़ी शिद्दत से है सिखाया ।
हम सोचते थे, अच्छी बनेगी तुमसे,
तुमने तो मुझे बात – बात पे है रुलाया

अभिनव कुमार

मरूंगा मैं, तो होगे तुम बेहद खुश,
लगा नहीं पाओगे खुद पर अंकुश,
होगे जैसे आज़ाद पिंजरे से,
मिलेगा तुम्हें चैन, शांति और सुख ।

अभिनव कुमार

पता नहीं किस मिट्टी के बने हो !
अकड़ है ऐसी, जैसे बरगद घने हो,
मनाने की बहुत कोशिश की हमने,
मानोगे मगर जब तुम्हारे हाथ मेरे खून से सने हों ।

अभिनव कुमार

क्यों इतना जज़्बाती हूं ?
तभी तो बिन कोई साथी हूं,
दीपक दूजा सदा है बनता,
मैं तो केवल बाती हूं ।

अभिनव कुमार

मेरी गलती क्या है ?
ये तो बता दो ।
फिर चाहे मुझको,
आप लाख सज़ा दो ।

अभिनव कुमार

अपना परिवार, गर अपने साथ,
फिर क्या बात, फिर क्या बात !
अपना परिवार, जो ना हो साथ,
फिर हर दिन है जैसे रात ।

अभिनव कुमार

किस्से करूं मैं खुलकर बात ?
किस्से ज़ाहिर करूं जज़्बात ?
एक कमरे में किया कैद मुझे,
बंद किए सारे संवाद ।

अभिनव कुमार
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