बजाए कि चीखें या झपटें,
बेहतर हो सब सुनें व समझें ।
इंसान हैं, इंसानियत निभाएं,
प्यार का सबको पाठ पढ़ाएं ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
इन खुशियों के पीछे गहरी उदासी है,
ऐसे ही नहीं दास्ताँ लिखी जाती है ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
मैं जिसको गलत समझता रहा,
उसने ना जाने कितनी बार मुझे ख़ुदा कहा ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
अभिनव कुमार – Aug 2020
ये क्या हो जाता है मुझको अचानक ?
मुझे ना समझो तो हो जाऊं मैं भयानक ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
बहुत लंबी कहानी है,
क्या कोई समझेगा !
बादल का क्या है,
कभी भी गरजेगा ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
मैं घुटता रहा तनहाईयों में,
वो उड़ती गई ऊंचाइयों पे ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
जितनी पुरानी होए, उतनी अच्छी शराब,
ऐसे गर रिश्ते भी होएं, फ़िर सबकुछ लाजवाब ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
कल लहरा रहा था मैं इमारतों में, गाड़ियों पे,
आज पड़ा हूँ तन्हा बंद सिमटे हुए अलमारियों में …
आपका तिरंगा
आपकी प्रतिष्ठा
याद रखना मुझे
आबाद रखना मुझे
अभिनव कुमार – 16 Aug 2020
प्यार क्या है, क्या कोई बताएगा ?
इस पेचीदा पहेली को क्या कोई सुलझाएगा ?
अभिनव कुमार – Aug 2020
अहसास तेरी कमी का इन फासलों से भी ज़्यादा है,
दिखा दे वो शख़्स जो तुझे मुझसे भी ज़्यादा चाहता है ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
वो ख़ुदा अपनी महर उसकी सहूलियत पर कर गया,
उसके पुण्य ही थे, जिस कारण ख़ुदा उसके दिल घर कर गया ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
कितना आनंद है शायरी में,
और मैं कविताओं में वक़्त ज़ाया करता रहा …
अभिनव कुमार – Aug 2020
किताबों पर धूल पड़ रही है,
बेबस वे ख़ुद को पढ़ रहीं हैं ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
दिल में कुछ, ज़ुबाँ पे कुछ,
तू इंसां, क्या है सचमुच ?
अभिनव कुमार – Aug 2020
ख़ुद को वो दो जिस्म एक जान कहते हैं,
नादां हैं, कुछ भी कहते रहते हैं ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
आए बुढ़ापा, जब जाए जवानी,
हो दूध का दूध, पानी का पानी ।
अभिनव कुमार – Aug 2020
वो टुकड़ा था आसमाँ का,
मेरे दिल में ठहर जाता कैसे !
वो कच्चा था ज़ुबाँ का,
मेरे वास्ते ज़मीर को जगाता कैसे !
अभिनव कुमार – Aug 2020
जो कभी हमारी ज़िंदगी की जान हुआ करते थे,
वे अरमान और अहसान हैं अब महज़
अभिनव कुमार – Aug 2020
कितना आनंद है शायरी में,
और मैं कविताओं में उलझा रहा …
अभिनव कुमार – Aug 2020
शमा महफ़िल में रहेगी तो पतंगे भी आते रहेंगे,
तू दिल में ही आती रहेगी तो धोखे ही खाते रहेंगे …
अभिनव कुमार
मत उलझा करो किसी ओर को सुलझाने में,
साक़ी बदनाम हो जाता है बिन पिए मयख़ाने में ।
अभिनव कुमार
ठीक पिछले साल,
कश्मीर हुआ आज़ाद,
ठीक आज के दिन,
अवध शिलान्यास
अभिनव कुमार – 5 Aug 2020
दोस्ती को बांध नहीं सकते,
ना दिनों में, ना रिश्तों में,
दोस्ती आती है साथ में लिपटी हुई,
जब पार्सल आते हैं फरिश्तों के
अभिनव कुमार
भूल गया हूँ मैं,
क्या होती है फ़ुरसत ?
वर्क फ्रॉम होम क्या हुआ,
हुआ चौबीसों घंटे नौकर
अभिनव कुमार
एक अरसा हुआ,
आपसे बात करे,
सोचा क्यों ना फ़िर,
साझा जज़्बात करें …
अभिनव कुमार
बहुत दिनों के बाद,
आपसे गुफ्तगू बात,
कैसे हैं जनाब ?
खैरियत है ना साब ।
अभिनव कुमार
इतना मत चढ़ाया कीजिए हमें जनाब, 🛐
हम सो नहीं पाते हैं …. 🥱
सोचते ही रहते हैं, 🤔
और लिखते चले जाते हैं ✍🏻
अभिनव कुमार
भाग – 2 पढ़िए