अब तो …..
रिश्तों में मिलावट है,
मुस्कान बस बनावट है,
आहट की ना चाहत है,
ख़ुद से ही बग़ावत है ।
ना जाने …
क्यूँ बदल गए इतने हैं हम ?
कहाँ गए अश्क़ वो थे जो नम ?
क्यूँ मतलबी हो गए हम हरदम ?
क्यूँ पैर नहीं अब जाते हैं थम ?
किस बात की दौड़ ?
क्यूँ इतनी होड़ ?
अपनों को छोड़,
हम चले किस और ?
सोचे मन ये है अक़्सर,
क्यूँ लम्बा इतना हुआ सफ़र ?
क्यूँ ना है चैन, ना कोई डगर ?
मोम दिल अब क्यूँ पत्थर ?
कोई जवाब ना सूझे अब,
क्यूँ जज़्बात गए हैं दब ?
काश कि आ जाए ख़ुद से रब,
फ़िर से बच्चे बन जाएं सब ।