इश्क का ऐसे ना इज़हार कर,
अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़
तेरे नैनों से मुझपे ना वार कर ।
मै इश्क का मारा हूं ,
मेरी सलामती की दुआ कर ।।
मेरी गज़लों से मेरा एतबार करना
अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़
प्यार हो जाए तो इकरार करना ।
ये ज़िन्दगी है पल-दो-पल की
शाम ढ़ल जाए तो इंतज़ार करना ।।
मुझे उनकी दुनियां मे रहना नही है
अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़
वफाओं का मंज़र मुझे सहना नही है
तेरे लिए मै और मेरे लिए ही तु है
ओ मां……प्यारी मां……मेरी मां ।।
मौत तो यूं ही नजदीक आ जाएगी
अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़
तब सांसों की डौरी टुट जाएगी ।।
प्यार-मौहाब्बत तो होती ही रहेगी
जब तक इस तन मे जां रहेगी ।।
तुम, मै और पूरी दुनियां सो जाएगी
जब सांसों की डौरी टुट जाएगी ।।
आ जाओ मिलकर ज़िन्दगी बसर कर लेते हैं ।
अजय महिया नोहर, हनुमानगढ़
तुमसे जूदा होकर तुम्हे बहुत miss करते हैं ।।
क्या पता कितनी बाकी रही है ये जिन्दगी ।
आओ आज एक छोटी-सी मुलाकात करते है ।।
अगर ज़िन्दग़ी को अच्छे से बसर करना है तो भीड़ से दूर चलो ।
अज़य महिया
21 वीं सदी के लोग अपना सबसे महान् काम मानते हैं आपकी कामयाबी के बढते कदमों को अपने कड़वे व असहनीय बातों के तीरों से हर हाल मे रोकना ।
अज़य महिया
महामूर्ख होते हैं वो लोग जो दूसरे की ज़िन्दगी पर अपना अधिकार जताते हैं ।
अज़य महिया
यहां लोग सिर्फ तुम्हारी कामयाबी को स्वीकार करते है,
कामयाबी की ओर बढते कदमों को कदापि स्वीकार नहीं कर सकते हैं ।
अज़य महिया
मौत तो यूं ही बदनाम है साहब ,
लोग उसे जान बूझकर गले लगाते हैं।
अज़य महिया
जब दुनियां से अलग रहना सीख लोगे ,
तब आपको अपनी मंजिल नज़दीक दिखेगी अन्यथा नहीं
अज़य महिया
मैंने मौत को देखा तो नहीं
अज़य महिया
पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी
कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं
जीना ही छोड़ देता हैं
मेरी ख्वाहिश तुम हो
अज़य महिया
इश्क़ की फरमाइश तुम हो
ए-ज़िन्दग़ी ग़म के रास्तों की पैदाइश तुम हो
लाख कोशिशें कर लो तुम हमसे मिलने की ए-साखी
अज़य महिया
तुम्हारी क़िस्मत हमसे नाराज़ है ।
साखी की नज़र सकार हो,
अज़य महिया
जो तड़फ रहे है हमे मिलने को
खुदा करे उनकी तड़फ बेशुमार हो