कितने साल गुज़र गए तेरी गलियों में आते-जाते पता ही नहीं चला,
अज़य महिया
ना तू मिल सकी ना तेरा निशां ||
कुछ तो हुआ है मेरी इन झुकी आँखों को
कमबख्त तुम्हारे चेहरे से हटती ही नही हैं ||अजय महिया
अज़य महिया
अपनी आँखों को देखना है दूसरों की आँखों से देखना,साहब!
अज़य महिया
सूना हैं ये बहुत जादू-टोने करती हैं
कमबख्त सांसे भी तेरे लिए चलती रही हैं
अज़य महिया
वरना हुस्न लिए तो कई आते हैं हमारे यहाँ
ये बारिश के मौसम ,ये हंसी वादियां,ये नज़ारे |
अज़य महिया
जब भी देखता हूँ तुम्हारी याद आ जाती है ||
रात जब ढली तो ख्वाबों में तुमसे जा मिले
अज़य महिया
सुबह हूई तो देखा कि चांदनी तो नदारद थी ||
हमीं महखाने से तौबा कर बैठे
अज़य महिया
वरना आदत तो तुम जैसी ही थी ||
जुदाई लम्बी हो तो बताई नहीं जाती
अज़य महिया
इसां के चेहरे पर नज़र आ जाती है ||
सोख लेती नज़्म खून के एक-एक कतरे को
अज़य महिया
पर हमने मोहब्बत हिन्दुस्तान से जो की है ||
कही गिरा हो एक कतरा भी उस खून का जिसमें हिन्दुस्तान की मोहब्बत हो |
अज़य महिया
कसम से उस मिट्टी को भरकर पूजने का मन करता है||
तराशा था उसे हीरे की तरह अपने दिल में |
अज़य महिया
कुछ लोगों को पता चलने पर चोरी कर ले गए ||
गुमनाम सी मोहब्बत है मेरी
अज़य महिया
ना दिल जानता है ना आँखें ||
सूना है एक रूह की शाम बहुत खुशी देती है
अज़य महिया
कभी मिले वो शाम तो अपने सारे ग़म डूबो दूं ||
कहीं बारिश की झङी है,कहीं ग़मों की आँधी |
अज़य महिया
रूख़स्त हूँ मैं अब तो आजा मेरे सपनों साथी ||
आजकल बारिश की तरह हो गए हो तुम
अज़य महिया
जब तुम्हारा मन करता तभी बात करते हो||
इस आलम-ए हुश्न का क्या कहें
अज़य महिया
साहब
सामने आते ही बारिश की तरह बरसते है ||
इस शाम-ए-बारिश की क्या तारीफ़ करूं
अज़य महिया
मैं तो शामे-बारिश का ही सताया हुआ बैठा हूँ ||
तुम्हारे शहरों मे नहीं उङती होगी धूल साहब
अज़य महिया
हम गाँव के लोग धूल को बारिश समझकर नहाते हैं ||
खुदा भी तन्हा होकर आँसू बहाता होगा
अज़य महिया
वरना ये ना होने वाली बारिश क्यों होती|
तितलियों को फूलों से इश्क करते देखा है,
अज़य महिया
चंचल मन को आसमां पर उङते देखा है
राह सही,पक्की हो तो मंजिल मिल जाती है,
गलत राहों पर जाने वालों को भटकते देखा है ||
कही गिरा हो एक कतरा भी उस खून का जिसमें हिन्दुस्तान की मोहब्बत हो |
अज़य महिया
कसम से उस मिट्टी को जी भरकर पूजने का मन करता है||