वो कहने लगे हम सुनने लगे
अजय महिया – इश्क का राही
किसको पता था वो इतना कह देंगे
अरे! हम तो तन्हाइयों की गली मे बैठे थे
किसको पता था गली भी बेवफा निकलेगी
इश्क तेरे दरबार से तकरार न हो,, अब मै महफुज़ हूं
तेरा खुदा बख्शे जिन्दगी मेरी , मै तेरे ही मज़ार मे हूंपागल करे महबूब मेरा ,किसी को अपनी मोहब्बत मे
मै नीले नभ मे ,तरनि का संचार हूं
क्योंकि मै संगीतकार हूं ,क्योंकि मै संगीतकार हूंसंगीत ही महबूब मेरा ,संगीत ही दिलो-जान ,अरमान है
अजय महिया – इश्क का राही
जिसने भी पूजा की मेरे महबूब की , वो ही उस्ताद नुसरत खान है
मै हर पल ख्वाब सजता हूं ,ना जाने वो क्या करती है ।
ख्वाहिशें,सपने सब तो हैं ,पर ना जाने वो कहां रहती है ।।
अजय महिया – इश्क का राही
क्या और क्यों पुछता है
अजय महिया – इश्क का राही
दुसरो से कि हम कैसे है
मेरी निगाहों से पुछ ले ओ जालिम
कि ये कितने सपने सजाती है
संगीत की किताब से कह देना
कि मुझे उसकी याद बहुत आती है