जीवन में कुछ करें ऐसे काम,
अभिनव कुमार
चाहे ना हो अपना नाम,
जिनसे हो गुलशन आवाम,
देखे अल्लाह, और बस राम l
कोई ज़िक्र भी नहीं,
अभिनव कुमार
कोई फ़िक्र भी नहीं,
मेरे जीने-मरने से,
कोई फर्क़ भी नहीं l
अब तक नहीं इज़हार किया,
अभिनव कुमार
मैंने कहाँ है ख़ुद से प्यार किया !
तू मुझपर क्या करेगा भरोसा,
मैंने ख़ुद पे नहीं ऐतबार किया l ✍🏻
कैसे खुश रहा जाए?
अभिनव कुमार
किससे हाल कहा जाए?
कुछ तुम ही बताओ,
थोड़ी आस जगाओ l
मुझे पता है – तुम ऊब जाते हो,
अभिनव कुमार
मेरी ‘कहानी’ सुन नहीं पाते हो,
कहने को तुम ‘दोस्त’ हो मेरे,
मेरी दशा मगर कहाँ समझ पाते हो !
जिसका भी बस चल रहा है,
अभिनव कुमार
वो रंग बदल रहा है,
मैंने सोचा “करूँ मैं भी प्रयत्न”,
मुझको मगर बुरा लग रहा है l
सबसे ऊपर दृढ़-विश्वास,
अभिनव कुमार
पर्वत नहीं कहीं आस-पास,
पूर्ण हो जब पर्वतारोहण,
पाँव तले संपूर्ण पहाड़
किसी से मैं निभा ना पाया,
अभिनव कुमार
मुझसे दूर मेरा ही साया,
दूर दराज की बात को छोड़ो,
मैं अपनों से ही हुआ पराया l
मैं रोया तो नाटक समझा तुमने,
अभिनव कुमार
मेरे जज्बातों को घातक समझा तुमने,
एक अच्छे ख़ासे व्यक्ति को पागल कहके,
अपनी तरक्की में बाधक समझा तुमने l
बताऊं तो बेइज्जती है,
अभिनव कुमार
नहीं तो ख़ुद की क्षति है,
क्या करूँ, क्या ना करूँ?
मारी गई जैसे मति है l
सब कुछ है, मगर कुछ नहीं,
अभिनव कुमार
जीवन में शांति बिल्कुल नहीं,
खरीदने के लिए चाहे धन सही,
ना है संतोष, व मूल नहीं l
रोने के हम आदि हैं,
अभिनव कुमार
क्या करें – ‘बेहद जज़्बाती हैं’ !
आपने ये कहके ठुकरा दिया,
कि ‘हम तो निराशावादी हैं’ !
नाराज़ शीघ्र हो जाता हूँ,
अभिनव कुमार
और मुँह भी बहुत बनाता हूँ’,
धन्यवाद इस अभिवादन का,
मैं बोलने से कतराता हूँ ।
मेरा हर लब्ज़ ‘ज़हर’,
अभिनव कुमार
तेरी हर अदा में कहर,
क्या हुई खता मुझसे ?
यही सोचता हूँ आठों पहर ।
कोई दोस्त बना ना पाया,
अभिनव कुमार
ख़ुद को ही दोस्त बना लेता,
रूह से देह का संगम,
उसको दिल से अपना लेता ।
ज़माना नहीं देखना अब,
अभिनव कुमार
अपने ही बस काफ़ी हैं,
कैसी भी, कोई, बात कहो,
लगा देते फांसी हैं ।
मुझे पता है,
अभिनव कुमार
तुम्हें बहुत गिले हैं मुझसे !
अभी तक जो तुम,
नहीं मिले हो मुझसे !
जवाब ना आए गर हमारा,
अभिनव कुमार
ये मत समझना “याद नहीं करते तुम्हें”,
हम मशरूफ़ हैं उलझनों में अभी,
रहते हैं अक़्सर बुझे बुझे । ✍🏻