ख़ुद को खुदा, तुझको जुदा है माना मैंने,
अभिनव कुमार
सच कहूँ – ख़ुद को बिल्कुल भी ना जाना मैंने !
एक अरसे बाद आज मेरी आँख खुली,
केवल ठुकराया बस, ना सीखा अपनाना मैंने । ✍🏻
मान ही गए हम तुम्हें जनाब,
अभिनव कुमार
मंसूबों को अपने दिया अंजाम,
ढूंढ ही ली मुझमें लाखों कमियां,
हम सोच रहे थे करोड़ों तादाद । ✍🏻
रिश्ते सिर्फ रक्त के ही नहीं होते,
अभिनव कुमार
ये पनपें जब आस्था हैं बोते,
तुम भी समझो, मैं भी समझूं,
वरना बस होते समझौते । ✍🏻
बोतल अभी भी बाकी है,
अभिनव कुमार
पर ना कोई अब साक़ी है,
छोड़ गया वो साथ है कि,
मुझमें नहीं चालाकी है ।
लिखता हूँ, फ़िर मिटाता हूँ,
अभिनव कुमार
सोचता बहुत ही ज़्यादा हूँ,
मेरी हैसियत कुछ भी नहीं,
मैं तो बस एक प्यादा हूँ ! ✍🏻
जाऊं इस जहान से तो,
अभिनव कुमार
हल्का होकर जाऊं,
सुना है बहुत रंजिशें हैं तुमको मुझसे,
बोलो, कैसे उन्हें मिटाऊँ ?
बहुत ऊब गए हो, पता है मुझे,
अभिनव कुमार
मेरी शिकायतों से खता है तुम्हें,
तुम ही नहीं हो केवल नाख़ुश,
पूरी दुनिया ही है ख़फ़ा मुझसे ।
ना कोई साथी है, ना ही साक़ी है,
अभिनव कुमार
ज़िन्दगी ना जाने कितनी अभी बाक़ी है !
तुम बन जाओ इक दोस्त मेरे,
कि इतनी भी नहीं मुझमें ख़राबी है ।