चंद्रयान तीन,
नहीं होए यकीन,
अद्भभुत उपलब्धि,
एक रात और दिन !
फतह लक्ष्य महान,
फूंक डाली जान,
भारत ने पाया,
सर्वोच्च स्थान ।
छुआ दक्षिणी ध्रुव,
थी कबसे भूख,
खुश चंदा मामा,
आए अपने खुद ।
विक्रम, प्रज्ञान,
ख़ुद थे हैरान,
मामा हुए व्याकुल,
नहीं ज्ञात अंजान ।
किए चरण स्पर्श,
लगे गले सहर्ष,
मामा नाराज़,
बोले “इतने वर्ष” !
“अरे बरखुरदार,
इतना इंतज़ार !
जाओ मैं नहीं करता,
तुमसे कोई बात ।”
दोनों ने मनाया,
ख़ूब ज़ोर लगाया,
तब जाकर माने,
फिर चंदा मामा ।
की खातिरदारी,
बोले “हूं आभारी,
चाहे देर से आए,
पर बाज़ी मारी ।
थोड़े दिन ठहरना,
घर अपना समझना,
मन करे जहां भी,
अठखेलियां करना ।”
दोनों ने बांधी,
मामा को राखी,
बोले “मां ने भेजी,
मुंह मीठा करो जी ।”
मामा हो गए भावुक,
आंसू ना रहें रुक,
फहराया तिरंगा,
गाड़ा उसे वहीं ख़ुद ।
बोले “भर आया मन,
नहीं पास मेरे धन,
क्या दूं बहना को ?
कुछ नहीं है सगन ।”
“मामा और क्या दोगे !
मत अब कहो ये,
हम बड़े हुए हैं,
लोरी आपकी सुनके ।
दुनिया ने सराहा,
लोहा मनवाया,
मां भारती नाम,
है अव्वल आया ।
आदेश मिला था,
हमें मां ने कहा था,
छोटे ही रहना,
सर पर मत चढ़ना ।
मां का था कहना,
तुम ये भी करना,
और करते हैं गड्ढे,
तुम गड्ढे भरना ।
किया वो ही पालन,
दक्षिण से आगमन,
छुए आपके पैर,
व दिल से नमन ।”
हुए भाव-विभोर,
मामा चित्तचोर,
दे डाली दुआएं,
ढेरों बिन शोर ।
कहा “आगे बड़ना,
बिल्कुल मत डरना,
मंज़िल पाओगे,
ऐसे हिम्मत करना ।
दिन दोगुनी होगी,
और रात चौगुनी,
है मंगलकामना,
हो सदा उन्नति ।
उज्ज्वल संस्कार,
तुम ही हकदार,
दिली इच्छा बनो,
विश्वगुरु तत्काल ।
जुनून रखना जारी,
झोंको शक्ति सारी
अभी छुआ है मुझको,
अब सूर्य की बारी ।
धीरज से जाना,
क्रोध मत दिलवाना,
माना गर्म बहुत हैं,
सीधे दिल में समाना ।”
लेखन प्रयासरत – अभिनव