अब ना सीखे, तो फ़िर कभी ना सीखे…..
क्या उड़ाएंगे हम किसी का मज़ाक ?
हम खुद बन गए हैं अब एक मज़ाक ।
बहुत था ख़ुद पर अभिमान,
अहंकार, शेखी, मद से बखान ।
आज सब धरा का धरा,
क्रोधित प्रकृति, नम है धरा ।
बहुत करा है तिरस्कार,
स्वार्थ, प्रलोभन, मलिन संसार ।
ईर्ष्या, क्रोध, किस किससे जंग,
बहुत कसे दूसरों पर तंज ।
लुप्त हुए आदत सत्कार,
व्यंग, उपहास, तिरस्कार ।
रहन सहन का बदला ढंग,
हुए तन्हा, ना कोई तरंग ।
गिले शिकवों की जैसे बाड़,
बंजर अहसास, रिश्ते उजाड़ ।
अपनी ना कभी दिखती गलती,
ख़ुद को छोड़, हर एक पे सख़्ती ।
बहुत आदतें हो चुकीं खराब,
ना कद्र, परवाह, बस ख़ुदके ख़्वाब ।
षड्यंत्र, धोखा, फरेब, साज़िश,
मलिन राजनीति, वैर व रंजिश ।
सेवा भाव की जगह अहसान,
भूले हम गीता व कुरान ।
मैं भगवान, मेरे गुणगान,
मेरे माफिक ना कोई इंसान ।
मेरी हरदम इज्ज़त व पूछ,
तू व्याकुल, लूं मैं आंखें मूंद ।
ऊपरी नाते, बनावटी संबंध,
कलह उत्पात असंख्य द्वंद ।
एक की टोपी दूजे सर,
छल कपट सबसे ऊपर ।
प्यार प्रेम हो गए हैं गुम,
दया करुणा बेबस गुमसुम ।
आते बाहर बिल से तब,
जब होता कोई मतलब ।
लापता बंधुत्व, ओझल भाईचारा,
रखवाला अब बना हत्यारा ।
धर्म बिकाऊ, बिकते अरमान,
सबसे ज़्यादा चले ये दुकान ।
ये कारोबार चले चौबीसों घंटे,
बेवजह नादां इंसां बंटते ।
निर्दोषों को मिलती सज़ा,
कलयुग में ना कोई जगह ।
रोशनी भरपूर, है चकाचौंध,
दिल पर काला, देते रोंद ।
खोखले दावे, मिट चुका वजूद,
कोशिश कि सब मिटें सबूत ।
करते दिल की, हम मनमानी,
दूजे को है नसीब ना पानी ।
काला बाज़ारी, काले धंधे,
क्या क्या नहीं अपनाते हथकंडे !
शुद्धता मार करे राज मिलावट,
सच्चाई तड़पे, हो घबराहट ।
पट्टी बांध, हुआ अंधा कानून,
मई से पहले आ गया जून ।
रक्षक बन गए कुंभकर्ण,
ना कोई हया, ना कोई शर्म ।
वातावरण भी बेहद मलिन,
व्यावसायिक हर शय, प्रदूषण रात दिन ।
अपराध ये जाएं जल्दी थम,
कुदरत ले रही ठोस कदम ।
कुदरत लेने ये संज्ञान,
ख़ुद उतरी, भयभीत हर इंसान ।
देख हमारे लोभ प्रयोजन,
प्रचण्ड रूप धारण, लिया पुनर्जन्म ।
माना ये है बेजुबान,
ये चोकस, ना है अंजान ।
प्रकृति फिर से हो रही तैयार,
नए मायने इजाद, नव आविष्कार ।
रावण का शीघ्र होगा विनाश,
जल्दी लंका दहन की आस ।
लेलें समय से हम सबक,
खोलें आंखें, जाएं सुधर ।
करें सम्मान, रखें सिर को नीचे,
संयम धीरज ना अब रहें पीछे ।
रहें सरल, करें प्रेम व प्यार,
आपसी सद्भाव, अच्छा व्यवहार ।
क्या चाहिए – यह ख़ुद से पूछें,
अंतर्बोध से सब कुछ बूझें ।
दूसरे की कमी, ना निकालें कभी,
बनें मिसाल, हो नेक छवि ।
बनें करुणामय, बदलें तौर तरीके,
अब ना सीखे, तो फ़िर कभी ना सीखे…
अब ना सीखे, तो फ़िर कभी ना सीखे…
विचार प्रस्तुती – अभिनव ✍🏻