कविता

आवाहन :( निर्गुण)

आवाहन 🙁 निर्गुण)

ठाढ़ी झरबेरिया वन में होत मिन सार बा 

कैसे जाऊँ पार पियरा नदिया के पार बा।

भोरी मतवारी तन की अब लगि कुआरि हूँ।

सगरौँ सिंगार कइली लागेला उघारि हूँ।

वहि पार.. पी. घर… यहि पार संसार बा।

कैसे जाऊँ पार! पियरा नदिया के पार बा||

घुप्प अँधियारा बाटइ राह न! सुझाला।

अंचरा छोड़ाईं केतन फँसि-फँसि बाला।।

अन्हरा का लाठी एगो दियना व बारि जा

कैसे जाऊँ पार पियरा नदिया के पार बा||

चोर खटाकरवा भरे माई की गुदरिया सुघरी बदनियाँ काटि रंगइ मोर चुंदरिया ||

लूटइ बदे थाती तोर लगली बजार बा।

कैसे जाऊं पार पियरा नदिया के पार बा।

पाकल-पाकल अमवाँ की डरिया ओनावा।

हम तो फैसल बाटी तू ही चलि आवा।।

घर संसार छूटल नइया मँझधार बा।

कैसे जाऊँ पार पियरा नदिया के पार बा।

कुछ व्यभि चारिणि कहँ कहैं कुछ दिवानी।।

कुल छाँडि जोगन चलीं मीरा ठकुरानी ।

चोर की चोरनियाँ खातिर पहरा अपार बा।।

कैसे जाऊँ पार पियरा नदिया के पार बा।।

<strong>लाल बिहारी मिश्र</strong> <strong>"निराश पथिक"</strong> सराय पवारा, जौनपुर

Related Posts

error: Content is protected !!