ईद
ईद,
मधुर संगीत,
भाई चारे का प्रतीक,
सौहार्द की उम्मीद ।
संगम व्यास व सिंध,
एकता की ईंट,
अहिंसा की जीत,
ना शक किंचित ।
दोस्ती निश्चित,
एक दूजे का हित,
तम जाए है बीत,
सबकुछ ही विनीत ।
बड़ी पुरानी रीत,
पूर्वजों की सीख,
बदले रोज़ तारीख़,
बन साथी, बन मीत ।
हर कोई रहे जीवित,
किस बात की ज़िद ?
क्या करने चले सिद्ध ?
प्रेम प्यार की नींव ।
ना कोई भी पीड़ित,
सभी परिपक्व पुरोहित,
सबको विवेक विदित,
चले बस लहर शीत ।
पाप से सब रहित,
ना कलह, ना किटकिट,
सब ख़ुश, सब ही मुदित,
करें प्रशंसा प्रोत्सहित ।
देश तभी हो विकसित,
जब ये सब हो सम्मिलित,
गर एक भी चीज़ से वंचित,
फ़िर बस प्रायश्चित …
बस प्रायश्चित …
आशावादी प्रयास – अभिनव ✍🏻