कविता

युद्ध हो रहा है

युद्ध हो रहा है

सूरत-ए-हाल दुनिया का ये क्या हो रहा है 
लौमड़ भर रहा तिजोरी और जोकर रो रहा है 
 
जंग-ए -वतन में आम आदमी पिस रहा है 
अहम के सिलबट्टे पर राजा सेना को घिस रहा है 
 
जो था कल तक महापंच सबका 
वही आज घर-घर जाकर जूते घिस रहा है 
 
किस बात पर तुम अड़े-अड़े से दिख रहे हो 
चापलूसी करते-करते मन क्यों नहीं थक रहा है  
 
बार-बार साथियों को पुकारने चले हो सभाओं में 
थोड़ी जमीन बची है,आसमान भी खिसक रहा है
 
दुश्मनों के भी आपस में होने लगे हैं रोज नए सौदे   
शह और मात के खेल में एक देश जल रहा है 

वंदना जैन मुंबई निवासी एक उभरती हुई लेखिका हैं | जीवन दर्शन,सामाजिक दर्शन और श्रृंगार पर कविताएं लिखना इन्हे बहुत पसंद है | समय-समय पर इनकी कविताएं कई अख़बारों और पत्रिकाओं में छपती  रही हैं | इनका स्वयं का काव्य संकलन "कलम वंदन" भी प्रकाशित हो…

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