कविता

रवि – कविता -अक्षी त्रिवेदी

रवि

शब्दों से रचा हुआ खेल कभी,
कहाँ किसिको समझ में आया हैं,
दूर से सब देख रहा वो,
पर कभी क्या समझाने आया हैं?

मन से विचलित होकर वो भी,
कहीं अपनी काया काली न कर जाए,
देख रहा है वो तो कलयुग,
कहीं इसका दर्शक न बन जाए।

डर लग रहा बस इसी बात का,
कहीं वो हमसे दूर न चला जाए,
अगर दूर हो गया तो,क्या पता?
हम भी कहीं गुम न हों जाए।

मैं अक्षी त्रिवेदी,राजस्थान की निवासी हुँ।मेरी रुचि साहित्य पढ़ने में हैं।हिंदी लेखन करने में ख़ुशी मिलती है और यह अपेक्षा करती हुँ की मेरे लेखन से सबको कुछ सीख मिलें।क़लम और पन्ने हमेशा से ही मेरे दोस्त रहे हैं। -अक्षी त्रिवेदी बाँसवाड़ा,राजस्थान।

Related Posts

error: Content is protected !!