कविता

सत्य को सहारा दो

सत्य को सहारा दो

दीपक हूँ मैं मुझे रोशन होने दो
तुम्हे‌ न्याय दिलाने के‌ लिए मुझे लड़ने दो
जली है समा मेरे भीतर परोपकार की
मुझे ईक ऩजर भरकर सत्य को देखने दो
नहीं जानता कब और कैसे होगी जीत मेरी
लेकिन तुम सच्चाई के लिए मेरा साथ तो‌ दो
मै जानता हूं अस्काम बहुत है तुम लोगों में
पर आगोश के आंच को आज़िज न होने दो
रास्ते‌ होगें सत्य के बहुत ही कठिन पर तुम‌
‌‌‌‌ डर‌ से घबराकर डगमगा मत जाना ए-लोगो
मै सदियों से देखता आया हूं हार तुम्हारी
क्योंकि तुम डरकर अन्याय का साथ देते हो
अब मै आ गया हूं तुम्हे ‘न्याय’ दिलाने
‌‌‌‌‌‌‌ लेकिन तुम सच्चाई के लिए मेरा साथ तो‌ दो
तुम सच्चाई के लिए मेरा साथ तो‌ दो
हे अजय ! तुम अन्याय का साथ तो मत दो

मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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