कविता

“एक पहाड़न”

पहाड़ों का भ्रमण चाय के लिए ढ़ाबे पर रूकना एक पहाड़न पहाड़ी टॉपी पहने हाथ में चाय का कप आहिस्ता छूना कप को होठों से

“एक पहाड़न”

पहाड़ों का भ्रमण

चाय के लिए 

ढ़ाबे पर रूकना 

एक पहाड़न 

पहाड़ी टॉपी पहने

हाथ में चाय का कप

आहिस्ता छूना

कप को होठों से

और

मेरी तरफ़ उसकी

तीरछी नजरें


मेरा सहसा रूकना

एकटक देखना

चाय से अधिक

पा लिया

लुत्फ़ दीदार में

चाय को भूल गया

पहाड़ो की सुंदरता

उसके चेहरे पर

महसूस कर ली

और

वृक्षों से हसीन लगे

उसके गज़रे
उसने चाय का कप

धीरे से रखा 

मेरी ओर देखते हुए

धूंए की तरह 

अदृश्य हो गयी 

उसके जाने से

मैं खाली हो गया

जैसे पंछी 

उड़ जाते है

और

खाली रह जाते है

सोने के पिंजरे

मैं मिर्ज़या साहवा राजस्थान के चुरू जिले के साहवा कस्बे का निवासी हूँ। किसान परिवार से संबंध रखते हुए निरन्तर लेखन कार्य करता रहता हूँ। मैं जहाँ प्रेम विषय पर लिखता हूँ वहीं सामाजिक, राष्ट्रवाद, किसानों के दर्द जैसे मुद्दों पर भी लिखता हूँ। मैं अध्ययनरत…

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