ज़िंदगी
ज़िंदगी एक बोझ है,
आज के इंसान की यही खोज है ।
अरे ज़िंदगी तो एक बहार है,
जीना आए तो प्यार, नहीं तो पहाड़ है ।
ज़िंदगी तो एक गीत है,
उसे जीना ही एक जीत है ।
जो इसे ना जी सके, उसपर धिक्कार है,
डर – डरकर जो जीता है, उसकी ज़िंदगी का क्या आधार है ?
अरे जीवन तो भगवान की अनमोल देन है,
जो रोकर इसे काटते हैं, उनके लिए ये छूटी हुई रेल है ।
ज़िंदगी एक जुनून है, ज़िंदगी एक आशा है,
हर पल ख़ुशी है, ये ना निराशा है ।
अरे इंसान बनने के लिए तो देवता भी तरसते हैं,
कलयुग में तो इंसान भी इंसान पर बरसते हैं ।
ज़िंदगी एक समझोता है, ज़िंदादिली का मुखौटा है,
जीते सभी हैं, पर अमर वही है जो परोपकार के बीज बोता है ।
इंसान तो स्वभाव से ही राजा है,
हक़ीक़त सुनते ही उसे क्रोध आता है ।
गलतियाँ दोहराने की उसकी पुरानी आदत है,
अपने दोष दूसरों पर लादना ही तो बगावत है ।
इंसान के लिए आज ज़िंदगी काटना भी मुश्किल है,
ज़िंदगी से वह ऐसे खफ़ा है, जैसे कुछ नहीं हासिल है ।
कौन कहता है इंसान गुणों में अंजाना है ?
इंसान के पास तो गलतफ़हमियों का खज़ाना है,
सबकुछ पाकर भी इंसान के पास दुखों का बहाना है,
चाँद पर पहुँचने के बावजूद भी आज इंसान को बहुत कुछ सिखाना है,
बहुत कुछ सिखाना है …
स्वरचित – अभिनव ✍🏻
उभरता कवि आपका “अभी”