भगवान परशुराम जी की महिमा
करें स्वीकार नमन भगवान परशुराम,
त्रेता व द्वापर युग में अवतरित नाम । 2
रामायण, भागवत पुराण,
महाभारत और कल्कि पुराण । 4
इन ग्रन्थों में उनके उल्लेख,
परशुरामजी के रूप अनेक । 6
देवराज इंद्र का था वरदान,
तभी उदय, तभी आविर्भाव । 8
‘जामदग्न्य’ भी था दूसरा नाम,
रेणुका, जमदग्नि की संतान । 10
पाँच सहोदर में थे वे अनुज,
आज्ञाकारी वे थे अद्भुत । 12
माता पिता के थे अनन्य भक्त,
जिस्म में जैसे रहता रक्त । 14
मात पिता प्रति पूरा समर्पण,
हर शय थी उनके लिए अर्पण । 16
सदा बड़ों का करते वे सम्मान,
ना कभी अवहेलना, और ना अपमान । 18
वीर थे, अदम्य दे,
साहसी दे, वे क्षम्य दे । 20
विष्णु जी के छठे अवतार,
अलग ही महिमा, पैनी धार । 22
शिव जी के परम भक्त,
शंकर से विशेष परशु प्राप्त । 24
विश्व कराने क्षत्रिय दमन से मुक्त,
इसी कारण लिया इन्होने जन्म । 26
क्षत्रियों का किया बारंबार विनाश,
निभाई परंपरा, हर्षित आकाश । 28
अक्षय तृतीया पे ये जन्मे,
इस अवसर पर पर्व हैं मनते । 30
विद्वान ऋषि और मुनि,
उसूल के पक्के, थे ये धुनि । 32
शस्त्रविद्या में थी महारत हासिल,
सैन्यशिक्षा में निपुण प्रवीण । 34
पशु-पक्षियों की समझते थे भाषा,
कहते समझते बातें साझा । 36
प्राकृतिक सौंदर्य से था गहरा लगाव,
रहे सृष्टि जीवंत, था ऐसा भाव । 38
ब्राहमण होने के बावजूद,
श्राप हेतू गुण क्षत्रिय मोजूद । 40
दुर्वासा की ही भाँति,
क्रोधी स्वभाव से मिलि विख्याति। 42
एक बार की बात है घटना दुखद घटी,
सरितास्नान के लिये गई माता रेणुका नदी । 44
वहाँ गंधर्व चित्ररथ था अप्सराओं के साथ,
जलक्रीड़ा था कर रहा, जैसे हो उन्माद । 46
देख उसे रेणुका हो गई जैसे मंत्रमुग्द,
इसी वजह प्रत्यागत में हो गया उसे विलंब । 48
पितृ जमदग्नि को अन्तर्मन से ये सब हो गया ज्ञात,
क्रोधित चिंतित हो गया, जैसे हो बदहाल । 50
पांचों पुत्रों को दे डाला उसने एक फरमान,
माँ का वध वे शीघ्र करें, जल्दी निकले जान । 52
चारों भ्राता ना हुए इसके लिए तैयार,
परशुराम ने माँ ली ये भी पिता की बात । 54
जमदग्नि चारों पुत्रों से हुए बिल्कुल खफ़ा,
जड़बुद्ध हो जाने का शाप दिया रो पड़ा । 56
पिता के आदेश का किया अनुपालन,
किया माँ का वध, भावुक पर मन । 58
परशुराम की आज्ञा मानने पर पिता हुए प्रसन्न,
बोले परशु मांग ले जो भी चाहिए वर । 60
बोला परशु पिता श्री वर मुझे दो दे दें ,
माता और चारों भ्राता को पुनः जीवित कर दें । 62
कुछ पल सोच पिता श्री ने चाहा सबका हित,
वर देके फिर हो गए माँ भ्राता जीवित । 64
एक बार की और है ये बात,
कार्तवीर्य ने दिया आश्रम उजाड़ । 66
उस वक़्त परशुराम अनुपस्थित,
आकर देख ये हुए वे क्रोधित । 68
पहुंचा उनको बहुत आघात,
सहस्त्र भुजाएँ कार्तवीर्य की दीं काट । 70
पितरों की आकाशवाणी सुन,
क्षत्रियों से उन्होने छोड़ा युद्ध । 72
पहले २१ बार क्षत्रिय-विहीन की धरा,
अब लगाया ध्यान, शुरू की तपस्या । 74
रामचन्द्र ने तोड़ा जब शिव का धनुष,
तब भी परशुराम हुए थे क्रुद्ध । 76
परिक्रम परीक्षा के लिए काम किया,
राम को अपना धनुष दिया । 78
रामजी ने जब धनुष चढ़ा दिया,
परशुराम को भली भांति ज्ञात हुआ । 80
समझ गए कि राम विष्णु अवतार,
की उनकी वन्दना, चले तप की और । 82
कहि जय जय रघुकुल केतू,
भुगुपति गए बनहि तप हेतु । 84
‘राम चरितमानस’ में यह वर्णन,
प्रथम सोपान दोहों में ये दर्पण । 86
पृथ्वी परशुराम के लिए ऋणी कृतज्ञ,
जीवनकाल में किए उन्होने अनेक यज्ञ । 88
बड़े होने पर परशुराम ने किया शिवाराधन,
नियम पालन देख हुए शिव प्रसन्न । 90
शिव ने उन्हें दैत्य हनन की दी आज्ञा,
परशुराम ने युद्ध में शत्रुओं का वध किया। 92
इस प्रक्रिया में उनका शरीर हुआ क्षत-विक्षत,
शिव ने दिए उन्हें कई वरदान होकर हर्षित । 94
परशुराम के शरीर पर हुए जितने प्रहार,
नेमत की उतना अधिक उन्हें होगा देवदत्व प्राप्त । 96
शिव ने किए उन्हें अनेक दिव्यास्त्र प्रदान,
पूजा आराधना आज्ञा पालन का ये परिणाम । 98
कर्ण ने अपना सही परिचय छिपा,
परशुराम से ली अस्त्र शस्त्र की शिक्षा । 100
जब परशुराम को पता चला,
कर्ण क्षत्रिय वंश से है जुड़ा । 102
श्राप दे दिया होकर व्याकुल,
अस्त्र शस्त्र विद्या कर्ण जाएगा भूल । 104
इसी कारणवश हुई कर्ण की मृत्यु,
काल चक्र का बन गया पिट्ठू । 106
सहायक, कृपालु, न्यायप्रिय, निष्पक्ष,
श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र कराया उपलब्ध । 108
गणेशजी ने शिवदर्शन से दिया जब रोक,
रुष्ट हुए परशुराम, की जब चोट । 110
गणेश जी का एक दांत हुआ नष्ट,
तभी से वे कहलाए जाते एकदंत। 112
चिरंजीवी हैं, वे अमर हैं,
चिरस्थायी हैं, अचल हैं । 114
उनकी महिमा अपरमपार,
श्रद्धा सुमन करें स्वीकार । 116
आत्म मंथन प्रयास – अभिनव (“अभी”)