कवितादेशख़ास

आपसा देश भक्त ना उत्पन्न अब तक

आपसा देश भक्त ना उत्पन्न अब तक ….

माननीय प्रधान मंत्री,
जन सेवक, भले मानस, संतरी ।

आपको कुछ बताना है,
मैंने भी अब ठाना है ।

आप उन्हें भाते नहीं,
कभी रास उनको आते नहीं,
आप मगर अडिग है,
कभी भी घबराते नहीं ।

उन्होंने आपको कभी नहीं चाहा,
अच्छा काम भी नहीं सराहा ।

इस विपदा की घड़ी,
आपको हमारी जरूरत पड़ी,
आप अगर कहें जो हमको,
हम खुदको लगादेंगे हथकड़ी ।

लॉकडॉउन क्योंकि देश हित,
निर्भीक संकल्प ना हुए भयभीत,
उन्हें मगर ना आया पसंद,
जो आप करो, वे हैं विपरीत ।

आपने भेजी उड़ानें बाहर,
आएं देशवासी सुरक्षित घर,
इसमें भी ना व्यक्त कृतज्ञता,
पत्थर है दिल, ना कोई असर ।

हज़ारों बसें आपने भिजवाई,
ताकि प्रवासी घर वापिस जाएं,
इसमें भी निकालें दोष,
जोखिम क्योंकि भीड़ बड़ जाए ।

अपेक्षा आपसे असंख्य अपार,
एक व्यक्ति वास्ते एक हो कार,
एक रात में बनें घर, आएं कारोबार,
पैसों रुपयों का लग जाए अंबार ।

जो भी हो,
पर आपसे ना मोह ।

अर्थव्यवस्था की चिंता छोड़,
आप ना बिल्कुल पड़े कमज़ोर,
हमारी ज़िन्दगी बचाने वास्ते,
थामा देश, लगाई रोक ।

कई शक्ति शाली बलवान देश,
ना जुर्रत कि रोकें कोई राज्य प्रदेश,
आपने दी पर एक मिसाल,
ऐतिहासिक मानवता का दिया संदेश ।

फ़िर भी आप उन्हें नहीं पसंद,
कौनसी मिट्टी के देशद्रोही दानव तन ?

उन्हें पसंद ना आपका विश्वास,
ना उनको रास आपकी एका बात,
दरिद्र, गरीब से आपकी मार्मिक माफ़ी,
कहां दफ़न उनके जज़्बात ?

आपकी निर्धन को आर्थिक सहायता,
ना उनको सुहाती, ना आती हया !

आपकी विनती बारम्बार,
घर में रहो, तभी बचेगी जान,
ना माने वे धूर्त गद्दार,
धर्म से जोड़ा, किया दुष्प्रचार ।

आपकी गुज़ारिश करें प्रकट आभार,
चिकित्सक, पुलिस का धन्यवाद,
उससे उन्होंने किया परहेज़,
सुकामना में खोजे अपवाद ।

कैसे बिताएं इक्कीस दिन ?
इनकी विशाल विकट उलझन,
आपसे उम्मीदें अनगिनत,
एक ही पल में निकालिए हल ।

पड़ोसी, नौकर की ना करें मदद,
स्वार्थ की पार करें ये हद,
आपसे आशा साग़र जितनी,
पैसे लगातार आप बांटें हर घर ।

अच्छा ख़ासा इनका वेतन,
फ़िर भी कंगाल, बेचैन मन,
आपसे मगर ये समझें जिन्न,
अर्थ व्यवस्था संभले बिन हुए विफल ।

ख़ुद ये आलस के हैं पुतले,
देर से पहुंचे सभा, कार्यालय,
आपसे चाहें अनुशासन पालन,
काला बाजारी के लिए कुछ समय दीजिए ।

इनकी सोच ये ही जानें,
आलोचक, भाव को क्या पहचानें !

पुलिस की मार की करते निंदा,
कहते मार दिया हमको ज़िंदा,
भारतीय विमान इनको सकुशल लाया,
तब क्यों नहीं आपको कहते फरिश्ता ?

अवैध शरणार्थी की जानें पीड़ा,
बिना बात पे उछले कीड़ा,
अफ़वाह के दम पे फैलाएं हिंसा,
सीधे कथन को भी लें ये टेड़ा ।

सिख, ईसाई, हिन्दू, मुस्लिम,
सेवा भाव में रात और दिन,
इन पर मगर ना रेंगती जूं,
बेअसर, धंसे हैं अंदर ज़मीन ।

आप इनके लिए बस राजनैतिक,
आंख के अंधे, ना सके हैं देख,
आपकी अच्छाई करें नजरअंदाज,
आपकी कमियों पे रहे रोटी सेक ।

काश कि आए वो एक पल !
समझें वे आपको मुखिया, अध्यक्ष,
आप परिपक्व, आप हैं दक्ष,
वे कुंठित, हीन, हर समय विपक्ष ।

आप जितना भी कर लें उपकार, जितनी भी नेकी,
इनकी नज़रों में मगर आप बस गलत, बुरे व दोषी ।

आप लाए विदेश से भारतीय बिन भेदभाव,
तब कहां छिपे बैठे थे ये भाई साहब ?
विकट परिस्थितियां रहा देश झेल,
फ़िर भी त्रुटियां निकालें ये बेहिसाब ।

आपकी तैयारियां बिल्कुल दमदार,
बख़ूबी निभा रहे आप दारोमदार,
ना मानी कभी, ना मानें आप हार,
शत्रु पे सटीक अचूक प्रहार ।

अपने मुंह मिया मिट्ठू ना आपकी छवि,
काम करते आप, ढोंग नहीं, जैसे रवि,
वे देखें तमाशा जैसे अजनबी,
पेश करते उदाहरण, देख हैरान सभी ।

आपको मंज़ूर नहीं प्रख्याति,
उद्योगपतियों के प्रयास संग आप हैं साथी,
मार्गदर्शक की कला भली भांति आती,
साथ में लेके चलें, जैसे सारथी ।

असामाजिक तत्व, करें देश से जंग,
जिन्हें देख देश शर्मसार, सन्न,
देश को जिन पर आती घिन,
ना बक्शें उन्हें आप, पूछें प्रश्न ।

उन लोगों का यही उद्देश्य,
अराजकता को देनी शय,
आपकी मेहनत और निश्चय,
असफल करना, फैलाना भय ।

जैसे हैं सारे देश के नागरिक,
इनका भी आप वैसे चाहें हित,
समान अधिकार, बेहतर सेवा,
ये फ़िर भी ना आपके मीत ।

चेहरे पे आप ना आने देते शिकन,
चाहे जितनी मुसीबतें, जितने भी विघ्न,
जीवित रहें हम, ज़िंदा हमारा जिस्म,
कद्र तहेदिल से आपकी लगन ।

जान अगर, तब ही है जहान,
हमसे आप, और देश की शान,
बहुत ही उम्दा आपका संज्ञान,
आप बदौलत देश महान ।

इस युद्ध में लक्ष्य नहीं है जीत,
जीवित रहें, यही दुआ और प्रीत,
नुकसान काम, समय जाए ये बीत,
ऊपर वाले से दुआ और उम्मीद ।

एक अभिप्राय, सिर्फ़ एक प्रयोजन,
ज़िंदा रहे हर एक एक जन,
विषाणु फैलाए बैठा फन,
जल्दी हारे ये दुश्मन ।

आपके साथ हैं हम सब,
दीजिए उपदेश, हाज़िर हम,
आपकी बातें सर आंखों पर,
क्योंकि झलकता आपमें दम ।

अर्थ व्यवस्था पुन्न: हो जाएं उत्पन्न,
ज़िंदा रहें हम सहित मन और तन,
तभी खिलेगा ये आंगन,
झूमेगा तब ही उपवन ।

आपके निर्णय का फ़ल बताएगा समय,
कोई अफ़सोस नहीं मगर हमें,
आपके प्रयत्न हों सफ़ल अजय,
आपपर भरोसा पूरा विश्व करे ।

हमारा स्वीकार करें निवेदन,
आप करें देश सेवा जन्मांतर तक ।

हमें आपकी अभी बहुत ज़रूरत,
आपसा देश भक्त ना उत्पन्न अब तक ….
आपसा देश भक्त ना उत्पन्न अब तक ….

जय हिन्द ।

स्वरचित – अभिनव ✍🏻

अभिनव कुमार एक साधारण छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विधायी कानून में स्नातक हैं और कंपनी सचिव हैं । अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर उन्हें कविताएं लिखने का शौक है या यूं कहें कि जुनून सा है ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वे इससे तनाव मुक्त महसूस करते…

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