कविता

बन जाऊं मैं काश …. जैसे योगी कुमार विश्वास

बन जाऊं मैं काश …. जैसे योगी कुमार विश्वास …

बन जाऊं मैं काश,
जैसे योगी कुमार विश्वास,
हरदम यही आस…
हरदम यही आस । 4

आ जाए मुझमें प्रकाश,
उन जैसा कि काश,
भरसक प्रयास …
भरसक प्रयास । 8

ना किंचित अंध विश्वास,
है लबालब आत्म विश्वास,
इसलिए वे हैं ख़ास…
इसलिए वे हैं ख़ास । 12

करता हूँ मैं अभ्यास,
होता भी हूँ निराश,
मैं थल, वे आकाश…
मैं थल, वे आकाश । 16

वे जैसे कि पलाश,
कद्र जानें हर श्वास,
ना तुलना, वे पचास …
ना तुलना, वे पचास । 20

ना करते कभी परिहास,
दें मनोबल, जो हो हताश,
हरदम मेरे पास …
वे हरदम मेरे पास । 24

मनमौजी और बिंदास,
मस्ती संग हर्षोल्लास,
मैं उनका हूँ दास …
मैं उनका हूँ दास । 28

हैं रोचक उपन्यास,
रच रहें हैं इतिहास,
वे मखमल, ना कपास …
वे मखमल, ना कपास । 32

झेले होंगे खूब वनवास,
सुनी होंगी भी बकवास,
हीरे निकले, जब गया तराश …
हीरे निकले, जब गया तराश । 36

ना चाहें भोगविलास,
लिया जैसे है सन्यास,
शांति ली अब तलाश …
शांति ली अब तलाश । 40

त्यागा है तख्तोताज,
सुनें ज़मीर की आवाज़,
हिन्द को इनपर नाज़ …
हिन्द को इनपर नाज़ । 44

अद्भुत इंका है अंदाज़,
मन जैसे शोभन लिबास,
क्या कहने – शाबाश …
क्या कहने – शाबाश । 48

विनम्र जैसे कि अब्बास,
सीधे सच्चे हैं सुभाष,
करें कुरीतियों का नाश …
करें कुरीतियों का नाश । 52

अपकारों का इनसे निकास,
उपकारों का इनमें निवास,
भले मानस डॉ विश्वास …
भले मानस डॉ विश्वास । 56

ना होते, ना करते संत्रास,
विचार खुल्ले, ना कारावास,
कुएं जैसे बुझाते प्यास …
कुएं जैसे बुझाते प्यास । 60

लिखा उपरोक्त सब होशोहवास,
मैं गुलाम, वे इक्का ताश,
ना मिले तो क्या दूरभाष …
ना मिले तो क्या दूरभाष ! 64

आत्ममंथन – अभिनव ✍🏻
उभरता कवि, आपका “अभी” 🙏🏻

अभिनव कुमार एक साधारण छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विधायी कानून में स्नातक हैं और कंपनी सचिव हैं । अपने व्यस्त जीवन में से कुछ समय निकालकर उन्हें कविताएं लिखने का शौक है या यूं कहें कि जुनून सा है ! सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि वे इससे तनाव मुक्त महसूस करते…

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