डॉक्टर,
यानी ईश्वर ।
एक देव,
साथ सदैव ।
या कहूं ख़ुदा,
जो कभी ना जुदा ।
मेरा शुभचिंतक,
सेवा करे अनथक ।
भगवान परमात्मा,
हर दम मुझे थामता ।
स्वयंभू परमेश्वर,
मौला का स्वर ।
अल्लाह नानक,
मेरे जीवन का चालक ।
रखे हथेली पे जान,
ये मेरा दीन ईमान ।
मुझे बीमारी से बचाता,
मेरा ईसा, मेरा विधाता ।
खून का ना कोई रिश्ता,
फ़िर भी वो जैसे फरिश्ता ।
प्रभु का दूसरा रूप,
ये अवतार जो है अनूप ।
दिया जगदीश का दर्जा,
मैं ऋणी, असंख्य है कर्ज़ा ।
निभा रहा ये अपना धर्म,
२४ घंटों करे अपना कर्म ।
मेरी छांव व मेरी धूप,
ये आदित्य का स्वरूप ।
रोग से दिलाता ये निजात,
कष्ट हरता, है मेरा नाथ ।
कहलाया जाता ये भी वैद्य,
हमें आज़ाद कर होता क़ैद ।
स्वास्थ्य कर्मी, चिकित्सक,
झुके शीश नतमस्तक ।
सब व्याधि की रखे दवाई,
है हमदर्द, ना कभी तन्हाई ।
कोई जब है काम ना आता,
मेरा जीवन ये ही बचाता ।
सब जब अपने हाथ खड़े करें,
ये ही दुश्मन से जा जान से लड़े ।
जितना करूं, कम पड़े सलाम,
अनुगृहित इसका है आवाम ।
सैनिक प्रहरी है ये योद्धा,
मेरी खातिर ये ना सोता ।
हृदयतल से है आभार,
कृतज्ञता, समर्पण, है सम्मान ।
जिसने इस पर किया है हमला,
दुर्भाग्यपूर्ण ये निंदनीय घटना ।
जिसने भी इसे किया है घायल,
बच ना पाएगा बुजदिल कायर ।
पशुवत अमानवीय है ये सोच,
मरा ज़मीर, क्यों ना संकोच ?
मन आया भर,
दहशत दुख डर ।
चिंता का विषय,
गुरु से लड़ रहा शिष्य ।
होता इसका अनादर,
मैली होती चादर ।
भर्त्सना भाव व लानत,
महंगी इसकी कीमत ।
तना अपना रहा वो काट,
ख़ुद से ख़ुद को रहा है बांट ।
घृणित घिनौनी ये करतूत,
अपना घर ही लिया है लूट ।
अपने पैरों पे मारी कुल्हाड़ी,
बदसलूकी पड़ जाए ना भारी ।
अपनी व्यथा वो किसे बताए ?
शुभ कर्म कर पत्थर खाए ।
शर्म से नीचे झुक गया सिर,
छाती जैसे दी है चीर ।
उसपे गर जो होगा वार,
पूजा नमाज़ का क्या आधार ?
गीता कुरान देते तालीम,
परवरदिगार से पहले हकीम ।
जिसने उसपर फैंके पत्थर,
फूंक दिया मानो अपना घर ।
निर्दय क्रूरता घात व हत्या,
कुछ ना हासिल, राह है भटका ।
गर डॉक्टर को दे देगा घाव,
पापी का फ़िर नहीं बचाव ।
कहती बाईबल गुरु ग्रंथ साहिब,
प्रेम भाईचारा अहिंसा हों एक ।
डॉक्टर्स, नर्स, स्वास्थ्य कर्मी, पुलिस,
सुनो इनके दुख दर्द, इनकी चीख ।
अपनी जान जोखिम में डाल,
बचा रहे ये हमारी जान ।
बजाए करने के सहयोग,
इनका हो रहा दुष्प्रयोग ।
इन्हें सम्मान का पूरा हक,
विश्वास आस्था हो भरसक ।
ये ही असली रोल मॉडल,
अंगारों पे ये रहे हैं चल ।
इनसे गर हो दुर्व्यवहार,
अपराधी पे है धिक्कार ।
धरती को कर रहा है बंजर,
ख़ुद पर घोंपा दोषी ने खंजर ।
पैरामेडिक्स का देखकेे त्याग,
आंखें नम, सराहनीय ये काम ।
बजाए बड़ाने के उनका मनोबल,
उनसे धोखा फरेब वा छल ।
कैसे पाएं हैं संस्कार ?
रखवाले को दे रहे आघात !
देश की बदनसीबी,
तहज़ीब की गरीबी ।
जिस थाली में कर रहे हैं भोजन,
उसमें छेद विश्वासघात गबन ।
माना ना कर सकते मदद,
पार मगर ना करें अपनी हद ।
हमारी खातिर वे रहे हैं जूझ,
फ़िर क्यों हिंसा और गोला बारूद ?
नेकी कर दरिया में डाल,
रक्षक हो रहा लहूलुहान ।
लज्जित मौन सन्न इंसानियत,
दुविधा में, क्यों बदली नीयत ?
फ़िर भी कम नहीं वैद्य का जज़्बा,
घूम रहे हर नुक्कड़ कस्बा ।
आज लग रहा है असहाय,
जाए तो वो किस राह जाए ?
हो रहा जैसे वो बेबस,
सांप रहे हैं जैसे डस ।
रूह कांप जाए,
जो वो घबराए ।
ऐसी स्थिति चिंताजनक,
ईश पे शक, यानी ख़ुद पर शक ।
अस्पताल में हो रहे बवाल,
ख़ुद से नासमझ पूछे सवाल !
नर्सों के साथ हो रही अभद्रता,
फूहड़पन, ताने और अश्लीलता ।
वैद्य के साथ ये करता कौन ?
ऊपर वाला देख व्याकुल मौन ।
इनपर वाजिब है कार्रवाई,
कुछ हद तक तब हो भरपाई ।
गुनहगार को जब वैद्य बचाएगा,
क्या उस वक्त वो उनसे नज़रे मिला पाएगा ?
इस सवाल का जवाब कठिन,
गद्दार का ज़मीर जागेगा किस दिन ?
जान बचाने वालों पर हमला गुनाह,
उनको ना कोई माफ़ी, ना मिले पनाह ।
असामाजिक तत्व,
तम घनत्व ।
हमलावर की सोच खतरनाक,
परमात्मा को भी करे है ख़ाक ।
मारपीट, गालियां, फेंक रहे हैं थूक,
चिंतन कहां पे हुई है चूक ?
औझल विनम्रता शिष्टाचार,
स्वार्थ मतलब का हो गया संसार ।
जांच का हो रहा पुरजोर विरोध,
भगाया जा रहा, बिन वजह क्रोध ।
करने दें सेवा, ना करें व्यवधान,
कुछ तो होगा दीन ईमान ।
भगवान से थोड़ा जाएं डर,
जैसे बोएं बीज, वैसे फ़ल ।
असंवेदनशील लोग,
समाज का मनोरोग ।
गंभीर अक्षम्य दुष्कृत्य,
ना कुछ गुप्त, सब तथ्य ।
चिकित्सक की सबसे अहम भूमिका,
इसको चूमा, मानो रब को चूमा ।
ना बंदूक, ना गोली, ना मिसाइल है संग,
फ़िर भी ये लड़ रहा है जंग ।
इसके जुनून को है नमन,
ये ही धरती, ये ही गगन ।
इसकी सेवा का यही सिला ?
अल्लाह से भला कोई करता है गिला ?
द्रवित व्याकुल मर्म,
संकट में है धर्म ।
अच्छा हो बर्ताव,
सही दिशा में बहाव ।
श्वेत वस्त्र में ये इंसान,
ज़रिया रब, ईसा, भगवान ।
सहयोगात्मक रवैया बहुत ज़रूरी,
आवश्यक हो ख़त्म दिलों में दूरी ।
सरकार का कड़ा फ़ैसला,
बड़ा चिकित्सकों का हौंसला ।
डॉक्टरों की हिफाज़त,
वास्ते पेश अधिनियम ।
महामारी रोग अधिनियम 1897,
मंज़ूरी के साथ संशोधन तय ।
ना और अन्याय,
होगा मजबूत, ना असहाय ।
अध्यादेश पास पेश,
हिंसा ना बर्दाश्त का संदेश ।
कठोर सज़ा का प्रावधान,
जुर्माने से भी संज्ञान ।
डॉक्टर्स के लिए सुरक्षा कवच,
हारेगा झूठ, जीत जाएगा सच ।
ज़ुल्म की अब आंधी,
पड़ेगी अत्याचारी को भारी ।
इस कदम का स्वागत,
दिल हुआ गदगद ।
इस कानून का वायदा,
उपद्रवियों के मन में डर पैदा ।
सरकार की प्रशंसा,
कानून में तब्दील मंशा ।
सही वक्त पर उचित निर्णय,
इरादों वाले होते हैं गिने चुने ।
स्वरचित – अभिनव ✍🏻