शॉर्ट-कट का ज़माना है…
शॉर्ट-कट का ज़माना है,
लम्बा माने पकाना है,
वक्त नहीं है व्यर्थ का,
काम की बात पे आना है ।
फेस बुक है, व्हाट्स ऐप्प है,
आई पैड और टैब हैं,
सोशल मीडिया एक्टिव हैं,
फ़िर भी कितने गैप हैं ।
शो-ऑफ की होड़ है,
पैसे की ही चौड़ है,
सतयुग में तू नहीं है प्यारे,
कलयुग का ये दौर है ।
सब कुछ ऑटोमैटिक है,
सुबह शाम ही पिकनिक है,
जिसकी पैकिंग मन-लुभावन,
हाथों-हाथ जाता वो बिक है ।
स्मार्ट-वर्क की मांग है,
रैप के चलते सांग हैं,
महनत वाला लाइन में पीछे,
वो कहलाता रॉन्ग है ।
हो गए हम एडवांस हैं,
लिव-इन है, रोमांस है,
एक टके की सेंस नहीं है,
सेल्फिश हाड़ का मांस है ।
झांकने का अब ना मन है,
दीमक है, खोखलपन है,
बेगानों से प्यार जताते,
अपनों से तो अनबन है ।
चाहिए चीज़ इम्पोर्टेड है,
अनगिनत ही नीड हैं,
आता जाता कुछ ना है पर,
करना हमको लीड है ।
करते बहुत ही केअर हैं,
जाने कितनी लेयर हैं !
ऊपर से ही चाहे लेकिन,
कहते हम “आई स्वेअर” हैं ।
ज़्यादा हो गए प्रैक्टिकल हैं,
एक्सक्यूज़ हैं, एक्ज़ैम्पल हैं,
फैशन-वैशन बहुत करें पर,
जतलाते कि सिंपल हैं ।
कहने को हम नूर हैं,
पास हैं, ना कि दूर हैं,
सीधे-सीधे क्यूँ नहीं कहते !
फॉर्मेलिटी से मजबूर हैं ।
दूजे दिल में बसते हैं,
कितने तंज ही कसते हैं,
ऊपर से है सहानुभूति,
अंदर कितना हंसते हैं ।
सीधे जैसे जलेबी हैं,
हम कितने ही फ़रेबी हैं,
दूसरे के ही दम पर हमने,
अपनी रोटियां सेकी हैं ।
एक नहीं कोई दोषी है,
सारे ही संतोषी हैं,
छींटा-कशी से ही हमारी,
ऊर्जा री-चार्ज होती है ।
स्वरचित – अभिनव ✍🏻
(कवि का इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना कतई नहीं है 🙅🏻♂️। ये व्यापक रूप से लिखी गई कविता है, जो समाज में निरर्थक आडंबरों की झलक से रूबरू करवाती है ।)