आज हम देश का 66 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे है। कहा जाता है कि, सामान्यतः पचास वर्”ा से अधिक होने पर जनन औेर प्रजनन क्षमता न्यून हो जाती है, लेकिन 66 साल के इस बुढाते देश में भ्रष्टाचार कामदेव के रुप में अवतरित हुआ है औेर उसने इस देश की गरिमा, सुचिता, की प्रतीक ईमानदारी को गर्भवती करने का दुःसाहस किया है। यद्यपि ईमानदारी ने स्वॅय को कई क्षेत्रों,आर्थिक,भौतिक,नैतिक,सामाजिक,धार्मिक,न्यायिक,चारित्रिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक तथा रा”ट्र के प्रति ईमानदारी, में बाॅटकर इससे बचने का प्रयास किया है लेकिन भृ”टाचार ने लगभग सभी क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कर ईमानदारी को अपने आगोश में लेकर उसे गर्भवती कर दिया है। स्थिति यहाॅ तक आ गई है कि, यह हमारे रा”ट्रीय चरित्र के समकक्ष होता जा रहा है।
आर्थिक ईमानदारी देश का सबसे बडा नासूर बनती जा रही है। हमें यदि कोई छेाटे से छोटा या बडे से बडा काम करवाना है अर्थ के बल पर वो अव’ंयभावी है। आज देश में हजारों कराडों के घोटालों पर देश की जनता द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया जाता। जेा ेंकुछ भी हो हल्ला मचता है वो सिर्फ राजनेैतिक स्वार्थ के कारण। इस दौरान एक नयाी परंपरा ने जन्म लिया है। देश के अधिकाशं घोटालों का पर्दाफाश मीडिया कर रहा है राजनैतिक दल केवल उसका राजनैतिक लाभ उठा रहे है। उन घेाटालों, के बारे में कोई भी राजनैतिक दल कोई हांेमवर्क नहीं करता। उनकी जानकारी केवल मीडिया द्वारा इकठठी की गई जानकारी भर होती है। 2 जी घेाटाला इस सदी का सबसे बडा घोटाला रहा। जिसमे मंत्री तक की गिरफतारी हुई। लेकिन उसका केवल राजनैतिक लाभ उठाने की दृ”िट से पार्टियों द्वारा संसंद में विरोध किया तथा संसंद को कई्र दिनों तक नहीं चलने दिया। एक ओर तो घोटाले में हुआ नुकसान देश ने भुगता दूसरी ओर केवल अपने ेराजनैतिक हितों को साधने की खातिर संसंद के संचालन पर हुये करोडों रुपयों का भार देश पर मढ दिया जबकि, प्रकरण न्यायालय ओर जाॅच एंजेन्सियों कें ेेविचााराधीन था। देश के करोडों रुपये बर्बाद कर देने के बाद क्या कोई राजनैतिक पार्टी उसका कोई फोलोअप कर पाई औेर देश के सामने कोई नई बात रख पाई? ‘ाायद नहीं। काॅमनवेल्थ गेम्स घोटाला, आदर्श सोसायटी घेाटाला आदि घोटाले केवल राजनैतिक लाभ की पगडंडियाॅ बन कर रह गये। कहीं कुछ एसा निकल कर देश के सामने प्रस्तुत नहीं हुआ जिससे देश को यह वि’वास हो कि, इस मामले में कुछ हुआ है।
देश की जनता को वि’वास है कि इसमें बहुत कुछ होने की संभावना भी नहीं है। स्पस्ट है कि, भृ”टाचार से आर्थिक ईमानदारी गर्भवती हुई है। एक समय था तब देश की नैतिक ईमानदारी की वि’व में मिसाल दी जाती थी। नैतिक ईमानदारी का आशय प्रत्येक क्षेत्र में नैतिकता का पालन। किसी भी चीज में मिलावट करने से उनकी अन्र्तरात्मा रोकती थी और उसके नुकसान के बारे में बताती थी। लेकिन आज मिलावट चरम पर है। जिस दूध को अबोध बच्चे पीते है उसमें यूरिया की मिलावट, जिस घी से भगवान को दीपक प्रज्जवलित होता है उसमें जानवरों की चर्बी की मिलावट, जिस दवा को जीवन रक्षिणी माना जाता है उसमें मिलावट। ये हमारी नैतिकता की कहानी कह रही है। चरित्रिक ईमानदारी के बारे में कहा जाता था कि, हम भारतीय बहुत चरित्रवान है। आज देश में दुधमुहीं बच्चियों से लेकर अधेड महिला तक कोई सुरक्षित नहीं है। अभी हाल ही में देश के सर्वोच्च पद ने ऐसे कैदियों को उनकी मृत्यु दंड की सजा को आजीवन कैद में परिवर्तित कर दिया जिन्होंने चार साल की बच्ची के साथ दु”कर्म करके उसकी हत्या की एवं उसके ‘ाव को गन्ने के खेतों में टुकडे करके गाढ दिया। दो अन्य केदियों ने जेलर की दस वर्”ाीय बालिका से दु”कर्म करके उसकी हत्या करदी। देश के सर्वोच्च पद का यह निणर्य इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि, इतिहास के पन्ने हमेंशा खंगाले जाते है।आज किसी भी बच्ची, युवती या अधेड से बालात्कार करना आम बात हो गई है। आज घर से बाहर निकलने वाली युवती या महिला प्रतिदिन एक से अनेक बार मानसिक रुप से बालात्कारित होती हैंएसी स्थिति में कहा जा सकता है कि, हमारी चारित्रिक ईमानदारी‘‘ चारित्रिक’’ लोगों से ही गर्भवती हो गई है।
भारत कभी वि’व का आध्यात्मिक गुरु था। हमारा जो ‘‘बेस्ट’’ था वो प’िचम ने ले लिया लेकिन प’िचम का‘‘वेस्ट’ हमने ग्रहण कर लिया। आज वि’व के अनेक देशों में हमारे ‘‘वास्तविक’’ आध्यात्मिक गुरु भारत के आध्यात्म का परचम फहरा रहे है। लेकिन आसाराम बापुओं, निर्मलबाबाओं जैसे अनेक तथा कथित धर्म ्रगुरुओें ने हमारी आध्यात्मिक आस्था की जडों को अपनी कारगुजारियों से अवि’वसनीयता के ेजल से सिचिंत करने का काम किया है। ऐसे लोगों से हमारी आध्यात्मिक ईमानदारी डगमगाई है। बाबा रामदेव ने अपने योग ’िाक्षण के माध्यम से अपनी सम्मानित छवि एक ऐसे योगगुरु की बनाई थी जिसने लाखों लोगों को डाक्टरों के चंगुल से मुक्त कर दिया थां। लेकिन पैसा, प्रति”ठा आपस में एक रा’िा के होने के कारण साथ साथ नहीं रह सके। एक ओर तो वे स्वॅय दवा निर्माण के क्षेत्र में आकर ‘ाुद्व व्यवसायी हो गये तथा अपनी प्रति”ठा को भुनाने के चक्कर में वे कालाधन की आड में ‘ाुद्व राजनीतिज्ञ हो गये। ऐसे मेंउनका योग प्र’िाक्षण कहीं पीछे छूटता गया। जिस योग से उन्हें ‘ाक्ति औेर उर्जा मिलती थी अब यह ‘ाक्ति और उर्जा उन्हें रोजाना सत्ता पक्ष को कोस कर मिलती है। यह भी आध्यात्मकिता की आड में व्यवसाय औेर राजनीति के घालमेल का उदाहरण है। बाबा ने यह बताने की को’िाश की कि, किस प्रकार अपनी छवि को भुनाया जा सकता है। भारत की न्यायव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रह गई है। हाल ही में जगन रेडडी को काफी बडी रकम देकर जमानत देने के मामले मे एक न्यायाधीश की गिरफतारी एक चितां का वि”ाय बन गई है। यदि इस क्षेत्र में भी भ्”टाचार ने अपने कदम फैला लिये तो फिर हम भृ”टाचार में सिरमौर होगें। आज न्यायपालिका को अत्यन्त सम्मान की दृ”िट से देखा जाता है।
देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने अनेक अवसरों पर देश की उलझन को रास्ता दिखाकर एक नई दिशा दी है। हम ई’वर से प्रर्थना करते है कि, कम से कम इस दिशा में भृ”टाचार के पैर न पहुॅच पायें।
वर्तमान समय में राजनैतिक ईमानदारी की चर्चा करना ही बेमानी है। राजनीति के ‘ाब्दको”ा से ईमानदारी ‘ाब्द कब से विलेापित हो चुका है। एक दूसरों पर झूठे आरोप लगाकर उसकी छवि को धूमिल करपस इन राजनेताओं का ‘ागल हो गया है। देश के ्रपधानमंत्री के कम बोलने को गूॅगा,धृतरा”ट्र आदि न जाने क्या क्या कहा जाता है। देश की संसद की गरिमा ‘ाून्य स्तर तक गिरादी गई है। आज देश की राजनीति मीडिया आधारित हो गई है। सुवह समाचार पत्र पढो या न्यूज चेनल देखों औेर उसके आधार पर संसंद में हंगामा खडा करों बोलो भी उतना ही जितना मीडिया ने बताया है। अपनी तरफ से कोई जानकारी इकठठा करने की जरुरत नहीं पडती। इन राजनीतिज्ञों के लिये मीडिया के अतिरिक्त एक औेर आधार है वो है जनता पार्टी के स्वयॅभू अध्यक्ष श्री सुब्रमण्यम स्वामी जो सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेने में रोजाना हजारों रुपये खर्च करते है। लेकिन उनका मकसद फिर भी पूरा नहीं हो पाता। कभी वे अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिये जयललिता के पीछे पडते हें तो कभी चिदंम्बरम के। आजकल वे एन.डी. ए के प्रमुख सूचना स्त्रोत है। वे किसी पर भी औेर कभी भी कोई इल्जाम लगा सकते है। जैेसे उन्होंने निर्वाचन आयोंग में प्रणव दादा जेेसे साफ सुथरे औेर अब राजनीति से परे हटकर देश के सर्वोच्च पद के उम्मीदवार के विरुद्व आरोप लगाकर अपनी और एन.डी.ए. की किरकिरी करवाई। राजनीति में अभद्र भा”ाा का प्रयोग करना सामान्य हो गया है। राजनीति में राजनैतिक ’िा”टाचार लुप्तप्रायः हो गया है। औेर उसका स्थान राजनैतिक भृ”टाचार ने ले लिया है।
आज ‘‘भृ”टाचार का स्पेक्ट्रम’’ चारों औेर फैल चुका है। दूर संचार का स्पेक्ट्रम सरकारी नियंत्रण में है तो भृ”टाचार का स्पेक्ट्रम आम जनता के लिये सरकारी सहयोग से विनिवेश का सर्वोत्तम साधन है जिसके ‘ोयरों के भाव कभी भी कम होना संभावित नहीं है। यह एक सामान्य बात न होकर गंभीर चिता का वि”ाय है कि, भृ”टाचार हरेक क्षेत्र में अपने सर्वोच्च स्थान पर है। उसने ईमानदारी को अपने आगोश में लेकर गर्भवती कर दिया है लेकिन इससे जो पैदा होगा वो देश को कहाॅ ले जायेगा ।