कविता

ज़िन्दगी‌ का गीत गुनगुनाते चलो

ज़िन्दगी‌ का गीत गुनगुनाते चलो
सफर को हमसफर बनाते‌ चलो ।
हर ग़म से भी बे’ग़म होते चलो
ज़िन्दगी‌ का गीत गुनगुनाते चलो ।।

है ग़ुलिस्तां गुल ये,कह रहे हैं सभी
मांगने से ना मिलेगी फिर ज़िंदगी ।
तन्हाई को मुस्कुराकर सहते चलो
ज़िन्दगी‌ का गीत गुनगुनाते चलो ।।

शाम का महखाना है ये, सुबह का मंदिर
ग़फलत मे ना हो जाए, ये ज़न्जीर ।
तवलख़ से भी तसव्वुर देखते चलो
ज़िन्दगी‌ का गीत गुनगुनाते चलो ।।

मै लेखक अजय महिया मेरा जन्म 04 फरवरी 1992 को एक छोटे से गॅाव(उदासर बड़ा त नोहर. जिला हनुमानगढ़ राजस्थान) के किसान परिवार मे हुआ है मै अपने माता-पिता का नाम कविता व संगीत के माध्यम करना चाहता हूं मै अपनी अलग पहचान बनाना चाहता हूं

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