दुल्हन थी क्या दीवाली ?
(स्वरचित – अभिनव✍)
दीपावली जब बीत जाती है,
एक मायूसी सी छा जाती है ।
रौनक ओझल हो जाती है,
महफ़िल बेमन सो जाती है ।
सबकुछ ठहर सा जाता है,
अकेलापन खाता है सताता है ।
दुल्हन जैसी थी सजी दीवाली,
आज मगर सब खाली खाली ।
जैसे बेटी विदा हो जाती है,
वैसे ही दीवाली जुदा हो जाती है ।
जैसे बहन की जाती है डोली,
वैसे आंसू बहाती है रंगोली ।
खुशी सन्न हो जाती है,
उदासी अपनेपन से बुलाती है ।
ठंडी पड़ जाती है गर्मजोशी,
पसरती है तो बस खामोशी ।
जगमग दिये,
अब थक लिए ।
असंख्य प्रकाश,
चुप और हताश ।
नम आंखों से देखती तैयारी,
कब आएगी उसकी अगली बारी ।
बाहें फैलाएं खड़ी लड़ियां,
आतुर जलने को गिन रही घड़ियां ।
मुंह खोले बैठे हरे पटाखे,
गली को सुनने धूम धड़ाके ।
साज सज्जा जो की थी कुछ दिन,
बीत गए वो लम्हें पलछिन ।
जबसे घर से गई दीवाली,
मन बेचैन जैसे बदहाली ।
दुखी दुखी से बैठे पकवान,
जैसे शरीर से निकल गई जान ।
फुलियां, पतासे, फ़ूल, मरूंडे,
दीवाली को सारे ढूंढें ।
रह जाती हैं तो बस यादें,
दीवाली की मीठी मीठी बातें ।
जब दीवाली आती है,
अजब सी मस्ती छाती है ।
मुस्कान दौड़ी चली आती है,
सुख शांति भी लाती है ।
जलने को आतुर मोमबत्तियां,
भागे जाले खुश परछत्तियां ।
सफ़ाई की भी जागी किस्मत,
हर कोना था चमका और छत ।
दूल्हे का जैसे होता स्वागत,
अमावस्या पे वैसी आवभगत ।
पिता ने पूरी किया था बंदोबस्त,
बिल्कुल बढ़िया बहुत ज़बरदस्त ।
भैय्या की भी खूब मशक्कत,
पूरी कर दी सारी ज़रूरत ।
विदाई सारे रीति रिवाजों से,
पाला जिसको नाज़ोंं से ।
दीवाली बिन सब लगे है सूना,
वो हो तो फिर चांद क्या छूना ।
जहां भी रहे हमारी दीवाली,
दुआ है मेहके छाए खुशहाली ।
इंतज़ार अगली दीवाली का,
फूलों को जैसे माली का ।
समृद्धि भरी आए दीवाली,
फिर सजेगी पूजा की थाली ।
फिर होगी लक्ष्मी गणेश की आरती,
फिर होंगी पार्वती और हम सब सारथी ।
उभरता कवि आपका “अभी” (अभिनव✍️)