सुशांत की आत्मकथा
किसपर करूं विश्वास ?
किसपे रखूं आस ?
दोस्त ने दगा दिया,
दिलरुबा ने ख़ून पिया ।
दोनों के थे कितने भेस !
थाली में ही कर दिए छेद ।
ऐश की, रहे साथ साथ,
और करा विश्वासघात ।
देख रहा मैं ऊपर से,
सारे सबूत हैं मिटा दिए ।
जो थी हत्या गहरी साज़िश,
आधे घंटे में आत्महत्या साबित ।
न्याय जाने कहां खो गया ?
रक्षक क्यूँ अन्जान हो गया ?
देखकर दिल दुखता है,
शर्म से सिर झुकता है ।
हो गया हूँ जैसे छलनी,
जैसी करनी वैसी ना भरनी ।
मर तो मैं पहले ही गया था,
ज़ुबां से चाहे नहीं बयां था ।
अब जिस्म को मेरे मार दिया,
धोखा दे अहसान किया ।
दुनिया से उठ गया ऐतबार,
अब ना आऊंगा दूजी बार ।
आपका – सुशांत सिंह राजपूत 😔✍🏻